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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 ( जूनियर ज्यूडिशियल असिस्टेंट के न्यू बेंच प्रारंभ) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Oct 5th, 06:47 by lucky shrivatri
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विधि व्यवस्था के भारतीयकरण के लिए देश भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता व नया भारतीय साक्ष्य अधिनियम लेकर आया है। इसका उद्देश्य कानूनों को अंग्रेजों के राज से निकल कर भारतीय रूप दिया जाए, इसके लिए इन कानूनों को हमारी अपनी भाषा में सरल बनाना आवश्यक था। इसी से जुड़ा एक और विषय है, वह है थानों में दर्ज होने वाली प्राथमिकी रिपोर्ट दर्ज होने वाली प्राथमिकी रिपोर्ट और अदालतों के फैसलों को आम भारतीय नागरिक के समझने लायक बनाना। यह तभी संभव है, जब हम इनको मुगलकाल की भाषा से मुक्त कर दें। अंग्रेजों के जमाने में मुगलों की भाषा का उपयोग होता रहा और आज भी उसे पूरी तरह बदला नहीं गया है। सही तरीके से कानून के राज का भारतीयकरण करना है, तो आम आदमी के लिए थाने की पहली सीढ़ी एफआईआर व न्याय पाने का साधन कोर्ट का फैसला दोनों को सरल भारतीय भाषा में लिखना होगा। इसमें अधिक से अधिक ऐसे शब्दों को प्रयोग हो, जो सबकी अपनी भाषा में हों। न्यायाधीशों के फैसलों और पुलिस प्रक्रिया में ऐसे बहुत से शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जो उर्दू, फारसी होते हैं। इनको आम आदमी समझ ही नहीें पाता। यह काम संसद से अधिक पुलिस के उच्च अधिकारियों और न्यायिक अधिकारियों के हाथ में हैं। इस बदलाव के लिए न केवल प्रशिक्षण की व्यवस्था हो, बल्कि थानों और छोटे न्यायालयों का निरिक्षण करने जाएं तो वहां प्रयोग की जा रही भाषा पर आवश्यक रूप ध्यान दें। मुगलकाल में न्यायालय के फैसलों और पुलिस के कामकाज में प्रयोग होने वाले उर्दू और फारसी शब्दों के प्रयोग से इस कारण परेशानी नहीं होती थी, क्योंकि उस समय उर्दू व फारसी भाषा का प्रयोग काफी अधिक होता था। अंग्रेजी शासन में कानूनों को पुख्ता बनाने पर तो काम हुआ, लेकिन न्यायालय व पुलिस की कार्यवाही की भाषा में बदलाव के लिए अधिक प्रयास नहीें किए गए हैं।
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