eng
competition

Text Practice Mode

साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 ( जूनियर ज्‍यूडिशियल असिस्‍टेंट के न्‍यू बेंच प्रारंभ) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Oct 4th, 09:50 by lovelesh shrivatri


0


Rating

338 words
16 completed
00:00
देश में जातीय भेदवाव की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका अनुमान लगाना आसान नहीं है, समय-समय पर सामने आने वाली कुछ घटनाओं से जातिवाद की जड़ों की गहराई का थाेड़ा बहुत अहसास ही हो पाता है। पत्रकार सुकन्‍या शांता बनाम भारत सरकार अन्‍य ऐसा ही एक उदाहरण है। एक जनहित याचिका पर स्‍वत: संज्ञान मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को विभिन्‍न राज्‍यों में अपनाए जा रहे जेल मैन्‍युअल के उन प्रावधानों को असंवैधानिक करार दिया, जिनके आधार पर कैदियों के साथ जातीय भेदभाव किया जाता रहा है। शीर्ष अदालत ने सभी राज्‍यों और केंद्र शासित प्रदेशों को तीन महीने के भीतर अपने जेल मैन्‍युअल संशोधित करने का निर्देश दिया है।  
शीर्ष अदालत के इस फैसले पर किसी को हैरानी नहीं हुई होगी क्‍योंकि संविधान में तो स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है कि धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। कोई ऐसा करता पाया जाता है तो उसके खिलाफ कानून भी है। हैरानी तो इस बात की है कि आजादी के अमृतकाल में गणतंत्र की स्‍थापना के 74 साल बाद तक कैदियों को जेल मैन्‍युअल के आधार पर जातीय दुराग्रह का शिकार बनाया जाता रहा और किसी ने इस पर ध्‍यान नहीं दिया। लोकतंत्र को कलंकित करने वाले प्रावधानों के खिलाफ किसी प्रत्रकार को अदालत से आग्रह करना पड़े, इससे अधिक शर्म की बात क्‍या हो सकती है? कैदियों की जाति देखकर उनके काम के निर्धारण को औपनिवेशिक काल के भी काफी पहले से चली रही कुप्रथाओं का नतीजा कहा जा सकता है। औपनिवेशिक काल में भी बदलाव इसलिए नहीं हुआ, क्‍योंकि अंग्रेजों की नजर में हमारे मानवाधिकारों का कोई मूल्‍य नहीं था। वे तो ऐसे नियम बना रहे थे जिनसे भारतीयों को और बांटा जा सके। पर आजादी के बाद इतने सालों तक हम क्‍या कर रहे थे। क्‍या नागरिकों के रूप में यह हम सबकी विफलता नही है? ब्राह्मणों से खाने पकाने का काम और हरि और चांडाल जैसे शब्‍दों का इस्‍तेमाल कर कथित नीची जातियों से सीवर की सफाई आखिर किस नियम के रूप में स्‍वीकार किया जाता रहा है।  

saving score / loading statistics ...