eng
competition

Text Practice Mode

साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Aug 14th, 07:22 by lovelesh shrivatri


1


Rating

294 words
30 completed
00:00
यह सच हैं कि शिक्षा व्‍यवस्‍था की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए किसी भी देश में ज्‍यादा से ज्‍यादा अच्‍छे शिक्षण संस्‍थानों की जरूरत महसूस की जाती है। गुणवत्ता पर निगरानी के लिए उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों की लगातार समीक्षा भी इसी जरूरत का हिस्‍सा है। इसीलिए रैकिंग का यह फ्रेमवर्क बना है। इस तरह की रैकिंग से विद्यार्थियों और अभिभावकों को तो बेहतर संस्‍थान के चयन का मौका मिलता ही है, उच्‍च रैकिंग वाले संस्‍थानों को भी कई तरह के लाभ मिलते हैं। विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से ऐसे संस्‍थानों को शैक्षणिक और प्रशासनिक स्‍वायत्तता भी प्राप्‍त होती है। इसका मतलब हैं कि उच्‍चतम रैकिंग वाले और मान्‍यता प्राप्‍त विश्‍वविद्यालय अपनी पंसद के पाठ्यक्रमों पर अधिक नियंत्रण होता है। साथ ही वे सार्वजनिक और बाहरी फडिंग का भी  लाभ उठा सकते है। इसलिए उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों में इस बात की होड़ होती है कि इस रैकिंग में अच्‍छा स्‍थान प्राप्‍त करें। रैकिंग पर नजर डालें तो साफ दिखता हैं कि बेहतर उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों के मामले में राज्‍यों में बहुत ही असमानता है। हालत यह है कि छत्तीसगढ़ और मध्‍यप्रदेश का एक भी विश्‍वविद्यालय शीर्ष 100 में शामिल नही हो पाया है। हां, राजस्‍थान के तीन विश्‍वविद्यालयों ने इसमें जरूर जगह बनाई है, जबकि मध्‍यप्रदेश के दो संस्‍थान इसमें शामिल है। छत्तीसगढ़ का कोई भी संस्‍थान इसमें जगह नहीं बना पाया। दूसरे कई राज्‍यों में भी असमानता कम नहीं।  
राज्‍यों के उच्‍च कई राज्‍यों को भी ज्‍यादा संसाधन देने होंगे। कमोबेश हर राज्‍य में कम से कम एक शिक्षण संस्‍थान ऐसा होना ही चाहिए जो उच्‍च शिक्षा क्षेत्र में बहेतर रैकिंग पाने में कामयाब हो जाए। सभी उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों को रैकिंग और रेटिंग ढांचे में शामिल करना चाहिए, ताकि संस्‍थानों की गुणवत्ता के बारे में छात्रों को सही जानकारी मिल सके।  
 
 
 
 
 
 
 
  

saving score / loading statistics ...