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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Aug 6th, 04:32 by sandhya shrivatri
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देश में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के साथ-साथ लोगों में उपचार को लेकर जागरूकता भी देखने में आ रही है, खास तौर से एक मरीज के रूप में अधिकारों को लेकर। यही वजह हैं कि चिकित्सकीय लापरवाही के मामले पुलिस से लेकर अदालतों तक पहुंच रहे है। कई मामलों में तो पीडितों व उनके परिजनों को अदालतों ने राहत भी दी है। बेंगलूरू के एक अस्पताल में प्रशिक्षु द्वारा एनेस्थीसिया देने का मामला भी ऐसी ही लापरवाही से जुड़ा है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित अस्पताल को दस लाख रूपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया है।
इस प्रकरण में बड़ी लापरवाही यह भी सामने आई कि इस प्रक्रिया के दौरान मौके पर प्रशिक्षित चिकित्सक नहीं थे। प्रशिक्षु के एनेस्थीसिया देने से मरीज की आवाज में कर्कशता आ गई। जिला फोरम ने इस मामले में अस्पताल को पांच लाख रूपए का मुआवजा देने के आदेश दिए थे लेकिन प्रभावित पक्ष अधिक मुआवजे के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। उपचार में लापरवाही की यह तो कोरी बानगी है। पिछले कुछ बरसों में जिस गति से स्वास्थ्य सेवाओं का व्यावसायीकरण हुआ है, उसी रफ्तार से लापरवाही के ऐसे मामले भी बढ़ने लगे है। ब्रिटेन व अमरीका जैसे विकसित देशों में उपचार की उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध है। वहां के निजी अस्पताओं में पेशेवरों द्वारा दिय जाने वाला उपचार भी उच्चतम मानकों का होता है। जबकि हमारे यहां चिकित्सा सुविधाएं तो बढ़ी हैं, लेकिन उसके अनुरूप गुणवतायुक्त स्वास्थ्य सेवाओं का अपेक्षाकृत अभाव है। अस्पताल में आए दिन ऐसे कई मामले सामने आते रहते है, जहां पर अस्पताल या चिकित्सकों पर इलाज में लापरवाही बरतने के आरोप लगते रहते है। एक तथ्य यह भी हैं कि कई बार ऐसे मामलों में सच्चाई नहीं होती। चिकित्सक रोगियों और उनके रिश्तेदारों द्वारा अनावश्यक रूप से घसीटने व कथिन लापरवाही के लिए मुआवजे की मांग करने के उदाहरण भी सामने आते रहे है।
चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों में बड़ी परेशानी आरोपों की जांच को लेकर सामने आती है तो जांच के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों की स्वतंत्र टीम की कोई व्यवस्था नहीं है, जो बहुत जरूरी है। चिकित्सकीय लापरवाही के मामले जिस तेजी से बढ़ रहे है, उनसे निपटने के लिए देश में जांच एजेसियों के पास खुद के चिकित्सा विशेषज्ञों की जरूरत महसूस होने लगी है। इस दिशा में केंद्र और राज्यों की सरकारों को जल्द कदम उठाने होंगे, जिससे ऐसे मामलों को सही तरीके से निपटाने में मदद मिल सकें।
इस प्रकरण में बड़ी लापरवाही यह भी सामने आई कि इस प्रक्रिया के दौरान मौके पर प्रशिक्षित चिकित्सक नहीं थे। प्रशिक्षु के एनेस्थीसिया देने से मरीज की आवाज में कर्कशता आ गई। जिला फोरम ने इस मामले में अस्पताल को पांच लाख रूपए का मुआवजा देने के आदेश दिए थे लेकिन प्रभावित पक्ष अधिक मुआवजे के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। उपचार में लापरवाही की यह तो कोरी बानगी है। पिछले कुछ बरसों में जिस गति से स्वास्थ्य सेवाओं का व्यावसायीकरण हुआ है, उसी रफ्तार से लापरवाही के ऐसे मामले भी बढ़ने लगे है। ब्रिटेन व अमरीका जैसे विकसित देशों में उपचार की उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध है। वहां के निजी अस्पताओं में पेशेवरों द्वारा दिय जाने वाला उपचार भी उच्चतम मानकों का होता है। जबकि हमारे यहां चिकित्सा सुविधाएं तो बढ़ी हैं, लेकिन उसके अनुरूप गुणवतायुक्त स्वास्थ्य सेवाओं का अपेक्षाकृत अभाव है। अस्पताल में आए दिन ऐसे कई मामले सामने आते रहते है, जहां पर अस्पताल या चिकित्सकों पर इलाज में लापरवाही बरतने के आरोप लगते रहते है। एक तथ्य यह भी हैं कि कई बार ऐसे मामलों में सच्चाई नहीं होती। चिकित्सक रोगियों और उनके रिश्तेदारों द्वारा अनावश्यक रूप से घसीटने व कथिन लापरवाही के लिए मुआवजे की मांग करने के उदाहरण भी सामने आते रहे है।
चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों में बड़ी परेशानी आरोपों की जांच को लेकर सामने आती है तो जांच के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों की स्वतंत्र टीम की कोई व्यवस्था नहीं है, जो बहुत जरूरी है। चिकित्सकीय लापरवाही के मामले जिस तेजी से बढ़ रहे है, उनसे निपटने के लिए देश में जांच एजेसियों के पास खुद के चिकित्सा विशेषज्ञों की जरूरत महसूस होने लगी है। इस दिशा में केंद्र और राज्यों की सरकारों को जल्द कदम उठाने होंगे, जिससे ऐसे मामलों को सही तरीके से निपटाने में मदद मिल सकें।
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