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श्री बागेश्‍वर अकादमी टीकमगढ़ (म.प्र) मों-6232538946

created Jul 23rd, 05:01 by Nitin tkg


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एक व्‍यक्ति था, उसके तीन मित्र थे। एक ऐसा जिससे वह प्रतिदिन मिलता था। दूसरा ऐसा था जिसे वह प्‍यार करता था अवश्‍य, पर मिलता था  एक दो सप्‍ताह में। और तीसरा ऐसा था जिसे वह महीनों के बाद कभी-कभी मिलता था। एक बार इसव्‍यक्ति पर मुकदमा बन गया। वकील ने  कहा मुकदमा बहुत सख्‍त है। तो ऐसा गवाह  तैयार करो  जो कहे कि तुम्‍हें जानता है औरतुम पर लगे अराेप को गलत समझता है। वह व्‍यक्ति अपनेद पहले मित्र के पास गया। बोला-एक मुकदमा बन गया है मेरे ऊपर, तुम चलकर मेरेे पक्ष में गवाही दो। मित्र ने कहा देखो भाई तुम्‍हारी मेरी  मित्रता अवश्‍य है, लेकिन  गवाही देने के लिए मैं तुम्‍हारे साथ एक पग भी नहीं जा सकता। यह व्‍यक्ति बहुत निराश हुआ, दुखी भी हुआ। तभी उसे दूसरे मित्र का विचार आया। उसके पास जाकर गवाही देने के लिए कहा। येद मित्र बोला- मैं तुम्‍हारे  साथ कचहरी के द्वार तक तो चल सकता हूँ लेकिन गवाही नहीं दूँगा। ये फिर दुखी हुआ। फिर उसे अपने तीसरे मित्र का ख्‍याल आया जिसे वह महीनों बाद थोड़ी  देर के लिए मिलता था। उसे अपनी बात कही। तीसरे मित्र ने जोश के साथ कहा- मैं चलूंगा तेरे साथ,तेरे पक्ष में गवाही दूँगा और मेरा दावा है कि यह मुकदमा समाप्‍त हो जाएगा, तू बरी हो जाएगाा। परन्‍तु वह मित्र कौन है? वह है आत्‍मा। पहला मित्र है- धन,संपत्ति,भवन, भूमि जिन्‍हें मनुष्‍य अपना समझता है और जिनके  लिए रातदिन हर समय चिंता करता है। दूसरा मित्र है ये संबंधी,रिश्‍तेदार, पत्‍नी, बच्‍चे, भाई, बहन जिनके लिए मनुष्‍य प्रत्‍येक कष्‍ट उठाता है। तीसरा मित्र है प्रभु-प्रेम और शुभ कर्म, जो प्रभु प्रेम के कारण किए जाते हैं।

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