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VSCTI, T.R. PURAM, MORENA, DIRECTOR SS YADAV MOB: 6263735890

created Jul 12th, 02:04 by Ayaz Khan


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तब प्रश्‍न यह है क्‍या उपरोक्‍त चोटें प्रतिअपीलार्थी (प्रत्‍यर्थी) संजय कुमार संदीप कुमार द्वारा कारित की गई थीं? जिस तीसरे व्‍यक्ति का नाम प्रथम सूचना प्रतिवेदन (प्रथम इत्तिला रिपोर्ट) में आया है उसका नाम शैलेश कुमार है। रिपोर्ट में तीनों व्‍यक्तियों का भाई होना बतलाया गया है। शैलेश कुमार का नाम नहीं लिखा है। शैलेश कुमार द्वारा केवल लात-घूंसों का प्रहार करना बताया है। भीम, अ. सा. क्र. 2 की साक्ष्‍य से यह स्‍पष्‍ट है कि ये तीनों भाई बैठे हुए थे और शायद यही कारण है कि शैलेश के पास कोई हथियार नहीं था। ऐसी स्थिति में शैलेश द्वारा भीम की हत्‍या करने का सामान्‍य आशय होना संभव प्रतीत नहीं होता और उसके द्वारा लात-घूंसों का प्रयोग करना बताया गया है। पर तो रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 में और ही डा. कु. छाबड़ा, साक्ष्‍य से इस प्रकार की कोई चोट होना पाया जाता है। यदि लात घूंसों का प्रयोग किया गया होता तो उसकी सूचना डा. कु. छाबड़ा को अवश्‍य दी जाती और यदि उन्‍हें इस प्रकार की सूचना दी गई होती तो वे निश्‍चय ही उसका विवरण अपनी रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 में देती। इस संदर्भ में डा. छाबड़ा से न्‍यायाल में कोई प्रश्‍न नहीं पूछा गया है। इसके विपरीत भीम, अ. सा. क्र. 2 ने अपनी साक्ष्‍य की कंडिका (पैरा) 28 में यह स्‍वीकार किया है कि उसने लात-घूंसों की मार के परिणामस्‍वरूप हुए दर्द बाबत डाक्‍टर से कुछ नहीं बताया था। यह संभव है कि लात-घूंसों से कोई चोट जो बाहर से देखी जा सके नहीं कारित हुई हो पर लात-घूंसों की मार का असर भी तो मार खाने वाले पर होता है। ऐसी स्थिति में प्रतिअपीलार्थी (प्रत्‍यर्थी) शैलेश द्वारा घटना में भाग लेना संदिग्‍ध हो जाता है। इस संभावना से भी इन्‍कार नहीं किया जा सकता है तीनों भाईयों के साथ होने के कारण ही उसका नाम जोड़ दिया गया हो। ऐसी स्थिति में इस न्‍यायालय के मतानुसार प्रतिअपीलार्थी (प्रत्‍यर्थी) क्रमांक 2 शैलेश कुमार को दोषी करार देने को कोई औचित्‍य नहीं है फलस्‍वरूप उसके विरूद्ध यह अपील निरस्‍त (अपास्‍त) की जाती है।  

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