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Malti Computer Center Tikamgarh
created May 17th, 03:14 by Ram999
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आधारभूत पंचतत्वों में से एक जल हमारे जीवन का आधार है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसलिये कवि रहीम ने कहा है- ‘‘रहिमन पानी राखिये बिना पानी सब सून। पानी गये न उबरै मोती मानुष चून।’’ यदि जल न होता तो सृष्टि का निर्माण सम्भव न होता। यही कारण है कि यह एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जिसका कोई मोल नहीं है जीवन के लिये जल की महत्ता को इसी से समझा जा सकता है कि बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ नदियों के तट पर ही विकसित हुई और अधिकांश प्राचीन नगर नदियों के तट पर ही बसे। जल की उपादेयता को ध्यान में रखकर यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम न सिर्फ जल का संरक्षण करें बल्कि उसे प्रदूषित होने से भी बचायें। इस सम्बन्ध में भारत के जल संरक्षण की एक समृद्ध परम्परा रही है और जीवन के बनाये रखने वाले कारक के रूप में हमारे वेद-शास्त्र जल की महिमा से भरे पड़े हैं। ऋग्वेद में जल को अमृत के समतुल्य बताते हुए कहा गया है- अप्सु अन्तः अमतं अप्सु भेषनं।
आबादी के लिहाज से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश भारत भी जल संकट से जूझ रहा है। यहाँ जल संकट की समस्या विकराल हो चुकी है। न सिर्फ शहरी क्षेत्रों में बल्कि ग्रामीण अंचलों में भी जल संकट बढ़ा है। वर्तमान में 20 करोड़ भारतीयों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में जहाँ पानी की कमी बढ़ी है, वहीं राज्यों के मध्य पानी से जुड़े विवाद भी गहराए हैं। भूगर्भीय जल का अत्यधिक दोहन होने के कारण धरती की कोख सूख रही है। जहाँ मीठे पानी का प्रतिशत कम हुआ है वहीं जल की लवणीयता बढ़ने से भी समस्या विकट हुई है। भूगर्भीय जल का अनियंत्रित दोहन तथा इस पर बढ़ती हमारी निर्भरता पारम्परिक जलस्रोतों व जल तकनीकों की उपेक्षा तथा जल संरक्षण और प्रबन्ध की उन्नत व उपयोगी तकनीकों का अभाव, जल शिक्षा का अभाव, भारतीय संविधान में जल के मुद्दे का राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में रखा जाना, निवेश की कमी तथा सुचिंतित योजनाओं का अभाव आदि ऐसे अनेक कारण हैं जिसकी वजह से भारत में जल संकट बढ़ा है। भारत में जनसंख्या विस्फोट ने जहाँ अनेक समस्याएँ उत्पन्न की हैं, वहीं पानी की कमी को भी बढ़ाया है। वर्तमान समय में देश की जनसंख्या प्रतिवर्ष 1.5 करोड़ प्रतिशत बढ़ रही है। ऐसे में वर्ष 2050 तक भारत की जनसंख्या 150 से 180 करोड़ के बीच पहुँचने की सम्भावना है। ऐसे में जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना कितना दुरुह होगा, समझा जा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि स्वतंत्रता के बाद प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता में 60 प्रतिशत की कमी आयी है।
आबादी के लिहाज से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश भारत भी जल संकट से जूझ रहा है। यहाँ जल संकट की समस्या विकराल हो चुकी है। न सिर्फ शहरी क्षेत्रों में बल्कि ग्रामीण अंचलों में भी जल संकट बढ़ा है। वर्तमान में 20 करोड़ भारतीयों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में जहाँ पानी की कमी बढ़ी है, वहीं राज्यों के मध्य पानी से जुड़े विवाद भी गहराए हैं। भूगर्भीय जल का अत्यधिक दोहन होने के कारण धरती की कोख सूख रही है। जहाँ मीठे पानी का प्रतिशत कम हुआ है वहीं जल की लवणीयता बढ़ने से भी समस्या विकट हुई है। भूगर्भीय जल का अनियंत्रित दोहन तथा इस पर बढ़ती हमारी निर्भरता पारम्परिक जलस्रोतों व जल तकनीकों की उपेक्षा तथा जल संरक्षण और प्रबन्ध की उन्नत व उपयोगी तकनीकों का अभाव, जल शिक्षा का अभाव, भारतीय संविधान में जल के मुद्दे का राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में रखा जाना, निवेश की कमी तथा सुचिंतित योजनाओं का अभाव आदि ऐसे अनेक कारण हैं जिसकी वजह से भारत में जल संकट बढ़ा है। भारत में जनसंख्या विस्फोट ने जहाँ अनेक समस्याएँ उत्पन्न की हैं, वहीं पानी की कमी को भी बढ़ाया है। वर्तमान समय में देश की जनसंख्या प्रतिवर्ष 1.5 करोड़ प्रतिशत बढ़ रही है। ऐसे में वर्ष 2050 तक भारत की जनसंख्या 150 से 180 करोड़ के बीच पहुँचने की सम्भावना है। ऐसे में जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना कितना दुरुह होगा, समझा जा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि स्वतंत्रता के बाद प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता में 60 प्रतिशत की कमी आयी है।
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