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Malti Computer Center Tikamgarh

created May 14th, 02:50 by Ram999


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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत प्रदान करके, सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा आम चुनाव में बराबरी-के-मैदान को गड़बड़ा देने वाले घटनाक्रम को पलट दिया है। मार्च में जब केजरीवाल को दिल्ली की शराब नीति बनाने में भ्रष्टाचार में उनकी कथित संलिप्तता के लिए गिरफ्तार किया गया था, हो सकता है तब यह संघवाद और लोकतंत्र पर साफ आघात प्रतीत हुआ हो। लेकिन चुनावी प्रक्रिया शुरू हो चुकने के बाद एक पदासीन मुख्यमंत्री और विपक्ष के एक प्रमुख नेता की गिरफ्तारी ने क्षेत्रीय पार्टियों के बीच बेचैनी पैदा कर दी। और उनके सलाखों के पीछे रहने से इस डर को बढ़ावा मिला कि जिन राज्यों को ऐसी पार्टियों द्वारा चलाया जा रहा है जो केंद्र में सत्तारूढ़ नहीं हैं, उन्हें आसानी से घुटनों पर लाया जा सकता है। इसके लिए, उनके मुख्यमंत्रियों को केंद्रीय एजेंसियों से ऐसे आरोपों में गिरफ्तार कराया जा सकता है जो सबूत पर आधारित हो भी सकते हैं और नहीं भी। केजरीवाल के मामले में, अदालत बिल्कुल सही है कि उसने उन्हें 1 जून (मतदान के आखिरी चरण वाले दिन) तक अंतरिम जमानत देने के लिए आम चुनाव को पर्याप्त कारण माना। उसका केंद्र की इस दलील को खारिज करना भी सही है कि यह राजनीतिज्ञों के साथ उपकारपूर्ण व्यवहार के बराबर होगा। जैसा कि अदालत ने कहा है, अंतरिम रिहाई आदेश “प्रश्नाधीन व्यक्ति और इर्द-गिर्द की परिस्थितियों से जुड़ी विलक्षणता” से संबंधित है। चुनाव प्रचार के अखाड़े से एक उल्लेखनीय नेता का बाहर रहना (खासकर जब वह अभी तक सजायाफ्ता हो), एक ऐसा पहलू होगा जो चुनाव की स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रकृति पर संदेह की छाया डालेगा।
अदालत ने उन्हें दिल्ली सचिवालय और मुख्यमंत्री कार्यालय से दूर रखते हुए, उनकी जमानत को सशर्त बनाया है। और वह अपने इस बयान से बंधे हुए हैं कि वह किसी आधिकारिक फाइल पर दस्तखत नहीं करेंगे, जब तक कि किसी चीज की खातिर उप-राज्यपाल की मंजूरी प्राप्त करने के लिए ऐसा करना जरूरी हो। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से कई समन के बावजूद उनका हाजिर नहीं होना, उनकी अच्छी तस्वीर पेश नहीं करता। लेकिन, इसके साथ-साथ, यह नहीं भूलना चाहिए कि चाहे सीबीआई का भ्रष्टाचार का आरोप हो या ईडी का धन शोधन का आरोप, उनके खिलाफ मामला उन संदिग्धों द्वारा बाद में दिये गये बयानों पर आधारित है जो सरकारी गवाह बन गये और उनके खिलाफ गवाही देने के वादे पर माफी हासिल की। इन बयानों का बतौर सबूत क्या मूल्य है, इसका परीक्षण मुकदमा चलने के दौरान होगा। इस पहलू पर भी गौर किया जाना चाहिए कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत जमानत मांगने पर वैधानिक पाबंदियां हैं, जिसके चलते कई लोग जमानत याचिका दायर करने के बजाय अपनी गिरफ्तारी की वैधता पर सवाल उठाते हैं, जैसा कि केजरीवाल ने किया। जिन लोगों के भागने की संभावना नहीं है उन्हें उचित शर्तों जो गवाहों पर उनका संभावित असर खत्म करती हों और सबूतों को सुरक्षित बनाती हों - के साथ जमानत देने के बुनियादी सिद्धांत का अगर अदालतें पालन करती हैं, तो जमानत के आदेशों से राजनीति प्रतिक्रियाएं या ऐसे संदेह जन्म नहीं लेंगे कि राजनीतिक वर्ग पर अनुचित रूप से उपकार किया जा रहा है।

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