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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created May 10th, 04:32 by lucky shrivatri


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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही स्‍त्रीधन की समुचित व्‍याख्‍या करते हुए जो फैसला दिया है, वह कानूनी दृष्टि से तो लोगों को स्‍त्री के अधिकारों को छीनने से रोकेगा ही। साथ ही सामाजिक और पारिवारिक स्‍तर पर भी पत्नियों के हक को पुख्‍ता करेगा। बेहतर तो यह है कि पारिवारिक विवाद परिवार या समाज के स्‍तर पर ही सुलझा लिए जाएं। इसमें पुलिस-कोर्ट कचहरी को हस्‍तक्षेप करना पड़े। यदि ऐसा हो जाए तो हालात बदल सकते है। जब तक ऐसा संभव नहीं होता, तब लोगों को कोर्ट की शरण लेनी ही पड़ेगी और तब कोर्ट ही दूध का दूध और पानी करेगा। स्‍त्रीधन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को इसी दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।  
सुप्रीम कोर्ट का फैसला वर पक्ष को आईना दिखाने के साथ आगाह भी करने वाला हैं कि वह स्‍त्रीधन को अपनी बपौती समझने की भूल करें। कोई ऐसा करता है तो यह उसके लिए भूल हो सकती है, लेकिन कानून की नजर में यह अपराध है। इसमें संबंधित व्‍यक्ति पर भारतीय दंड संहिता की धारा 406 के तहत मुकदमें की कार्रवाई का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्‍पष्‍ट रूप में रेखांकित कर दिया है कि स्‍त्रीधन पर केवल और केवल स्‍त्री का ही हक है। उसके पति का इस पर कोई अधिकार नहीं है। यह कड़वी सच्‍चाई हैं कि देश का जो सामाजिक परिवेश है, उसमें स्‍त्री धन पर ससुराल पक्ष अपना हक मानता है। जाने-अनजाने यह भूल व्‍यापक स्‍तर पर होती रही है। विवाह के समय महिला को मिलने वाले धन, कपड़े, आभूषण, उपहार और कालांतर में नौकरी से लड़की को होने वाली आमदानी सब पर पूरा हक मानने की सामान्‍य प्रवृत्ति बड़ी संख्‍या में आम भारतीय परिवारों में घर की हुई है। यह कहने में भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि ससुराल पक्ष इस पर सिर्फ अपना अधिकार समझता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला उन्‍हें ऐसा करने से रोकेगा। इस फैसले के बाद समस्‍या जड़ से समाप्‍त हो जाएगी, ऐसा नहीं कहा जा सकता। महिलाओं को दहेज की समस्‍या से बचाने के लिए दहेज निरोधक कानून बनाया गया। इसके बावजूद दहेज का व्‍यापक प्रचलन है या कह सकते हैं कि खुले आम लिया और दिया जा रहा है। साथ ही इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि कानून बनने के बाद इसके क्रियान्‍वयन में सख्‍ती होती है, तो इसका असर समाज कानून का सख्‍ती से क्रियान्‍वयन बहुत आवश्‍यक है।  
ताजा फैसला विश्‍वास जगाने वाला है। यह समस्‍या पर चोट करने वाला साबित होगा। फैसला इस पहलू से भी उपयोगी हैं कि इससे समाज में जागरूकता के प्रसार भी होगा। जागरूकता और कानून का भय, ये दोनों पहलू मिलकर ही व्‍यवस्‍था को पटरी से उतरने से रोकते है। महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और उनको उत्‍पीड़न से बचाने के लिए जांच एजेंसियों को शिकायत मिलते ही तुरंत कार्रवाई करने पर ध्‍यान देना चाहिए।  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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