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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

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कबीर के बेटे कमाल ने भी अपने पिता के रास्‍ते पर चलते हुए अपना जीवन ईश्‍वर की उपासना में समर्पित कर दिया था। वह एक झोंपड़ी में रहते हुए दिन-रात प्रभु की आराधना करते थे। एक दिन काशी नरेश को किसी ने बताया कि कमाल भी कबीर की ही तरह लोभ, मोह, ईर्ष्‍या आदि सेे दूर है। उन्‍हें केवल लोगों के दुख-दर्द दूर करने में आनंद मिलता है। वह कीमती से कीमती भेंट को भी तुच्‍छ समझते है। काशी नरेश ये जानने के लिए कमाल के पास आए और कुछ बातें की। फिर उन्‍हें एक बहुमूल्‍य अंगूठी भेंट करते हुए बोले, आपने मुझे ज्ञान के अनमोल मोती प्रदान किए है। मैं एक छोटी सी भेंट आपको दक्षिण में देना चाहता हूं। कमाल ने अंगूठी की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखा और बोले, यदि आपके मन में दक्षिणा देने की इच्‍छा है, तो यहीं कहीं इस भेंट को छोड़ दें। कमाल की बात सुनकर काशी नरेश अंगूठी झोंपड़ी में रख दी और वहां से चले गए। उन्‍होंने सोचा, भला कोई भी व्‍यक्ति कीमती अंगूठी की ओर नजर भी मारे ऐसा कैसे हो सकता है। यह सोचकर वह अगले दिन फिर कमाल के पास पहुंचे। कमाल हंसकर बोले, आइए महाराज, आज क्‍या भेंट लाए है? यह जवाब सुनकर काशी नरेश को अत्‍यंत हैरानी हुई। वह बोले, आज तो मैं कल भेंट की हुई अंगूठी वापस लेने आया हूं। कहां है वह अंगूठी। इस पर कमाल बोले, मुझे क्‍या पता। आप जहां छोड़कर गए होंगे, वहीं होगी। मुझे तो उसकी आवश्‍यकता नहीं थी। यह सुनकर काशी नरेश ने छप्‍पर पर हाथ बढ़ाया तो अंगूठी को वहीं पाकर चकित रह गए। वह कमाल के पैरों में गिर पड़े और बोले ऐसी विरक्ति मेेरे अंदर भी ला दें, ताकि मैं भी अपने जन्‍म को सफल कर सकूं। कमाल ने उन्‍हें लाभ-लोभ से मुक्‍त होकर राजकाज चलाने की सलाह दी।  
सीख- सादा जीवन उच्‍च विचार को अपनाएं।    

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