Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created May 3rd 2024, 04:34 by rajni shrivatri
2
417 words
5 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
saving score / loading statistics ...
00:00
बढ़ती उम्र और रोजगार के सीमित अवसरों के चलते बुजुर्ग एक दौर में अपनों पर आश्रित होने को मजबूर हो जाते है। ऐसे बुजुगो को तो खास तौर से सामाजिक किरण सरकार की तरफ से भी जब बुजुर्गो की अनदेखी सामने आने लगे जो चिंता स्वाभाविक है। इससे भी बड़ी चिंता यह है कि देश में बड़ी संख्या में बुजुर्ग सरकारी पेंशन व राशन से इसलिए वंचित हो रहे है क्योंकि उनकी हाथों की रेखाएं उम्र के इस पड़ाव में घिस गई है। इतना ही नहीं आंखों की पुतलियां भी उनकी बायोमेट्रिक पहचान नहीं कर पा रही। इसी तरह की परेशानियां सरकारी स्तर की नि:शुल्क उपचार योजानाओं का फायदा लेते वक्त बुजुर्गो के सामने आती है।
सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी तमाम योजनाओं को आधार अथवा प्रदेश स्तर के पहचान पत्रों से जोड़ने का काम इसीलिए किया गया था ताकि वास्तविक हकदार को इनका लाभ मिल सके। लेकिन यह तकनीकी व्यवस्था ही बाधक बन रही है ताो बुजुर्गो की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में पात्रता की पहचान करने के लिए अन्य व्यवस्था होनी ही चाहिए। वैसे चाहे पेंशन हो या फिर राशन सामग्री पहुंचाने का काम, बुजुर्गो तक इनकी पहुंच की व्यवस्था करनी ही चाहिए। बोयोमेट्रिक पहचान के लिए फिंगर प्रिट व आंखों की पुतलियों के इस्तेमाल की जगह भौतिक सत्यापन की व्यवस्था ही काफी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की पिछले दिनों जारी एक रिपोर्ट में भी कहा गया था कि बुजुर्गो को बेहतर जीवन देने की जरूरत है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना होगा कि सरकारें भी वृद्धों के प्रति उत्तरदायी बनें। यह भी सच है कि बुजुर्गो को लंबी अवधि तक सतत देखभाल की जरूरत भी है। देश के ग्रामीण इलाकों में आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। नीति आयोग ने भी पिछले दिनों जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि बुजुर्गो के जीवनयापन से जुड़े मासिक खर्च का 13 फीसदी हिस्सा सेहत से जुड़ा है। चिंता यह भी हैं कि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं लाभान्वित होने वाले बुजुर्गो में अधिकांश के पास सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का फायदा भी नहीं पहुंच पाता। वृद्धावस्था के नाम पर जो पेंशन मिलती हैं वह भी नाम मात्र की होती है।
बुजुर्गो को सरकारी मदद पहुंचने में तकनीक बाधक नहीं बननी चाहिए। चुनाव आयोग ने अस्सी साल से ज्यादा उम्र के लोगों के साथ-साथ दिव्यांगों के वोट उनके घर तक पहुंच कर डलवाने का इंतजाम किया था। अलग-अलग कारणों से यदि बायोमेट्रिक पहचान का संकट आ रहा हो तो बुजुर्गो के लिए ऐसी ही व्यवस्था सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए भी की जा सकती है।
सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी तमाम योजनाओं को आधार अथवा प्रदेश स्तर के पहचान पत्रों से जोड़ने का काम इसीलिए किया गया था ताकि वास्तविक हकदार को इनका लाभ मिल सके। लेकिन यह तकनीकी व्यवस्था ही बाधक बन रही है ताो बुजुर्गो की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में पात्रता की पहचान करने के लिए अन्य व्यवस्था होनी ही चाहिए। वैसे चाहे पेंशन हो या फिर राशन सामग्री पहुंचाने का काम, बुजुर्गो तक इनकी पहुंच की व्यवस्था करनी ही चाहिए। बोयोमेट्रिक पहचान के लिए फिंगर प्रिट व आंखों की पुतलियों के इस्तेमाल की जगह भौतिक सत्यापन की व्यवस्था ही काफी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की पिछले दिनों जारी एक रिपोर्ट में भी कहा गया था कि बुजुर्गो को बेहतर जीवन देने की जरूरत है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना होगा कि सरकारें भी वृद्धों के प्रति उत्तरदायी बनें। यह भी सच है कि बुजुर्गो को लंबी अवधि तक सतत देखभाल की जरूरत भी है। देश के ग्रामीण इलाकों में आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। नीति आयोग ने भी पिछले दिनों जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि बुजुर्गो के जीवनयापन से जुड़े मासिक खर्च का 13 फीसदी हिस्सा सेहत से जुड़ा है। चिंता यह भी हैं कि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं लाभान्वित होने वाले बुजुर्गो में अधिकांश के पास सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का फायदा भी नहीं पहुंच पाता। वृद्धावस्था के नाम पर जो पेंशन मिलती हैं वह भी नाम मात्र की होती है।
बुजुर्गो को सरकारी मदद पहुंचने में तकनीक बाधक नहीं बननी चाहिए। चुनाव आयोग ने अस्सी साल से ज्यादा उम्र के लोगों के साथ-साथ दिव्यांगों के वोट उनके घर तक पहुंच कर डलवाने का इंतजाम किया था। अलग-अलग कारणों से यदि बायोमेट्रिक पहचान का संकट आ रहा हो तो बुजुर्गो के लिए ऐसी ही व्यवस्था सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए भी की जा सकती है।
