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Malti Computer Center Tikamgarh

created May 2nd, 02:33 by Ram999


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जापान के एक छोटे से राज्य पर समीपवर्ती एक विशाल राज्य ने हमला कर दिया। अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित विशाल सेना देखकर जापान का सेनापति हिम्मत हार बैठा। उसने राजा से कहा किहमारी साधनहीन छोटी सी सैन्य शक्ति इसका सामना कदाचित ही कर पायेगी। नाहक सैनिकों को खत्म करने के बजाय संघर्ष करना ही ठीक है। पर राजा बिना प्रयास के हार मानने के पक्ष में नहीं था, उसे अचानक याद आया कि राज्य में एक फकीर है शायद वही कुछ समाधान बता सके यही सोचकर राजा स्वयं फकीर से मिलने चल निकला। फकीर ने बिना विलम्ब किये उत्तर दिया कि सबसे पहले तो सेनापति को पद से हटा दीजिये, क्योंकि जिस ने रण से पहले  ही हार की आशंका  बता दी वह भला क्या जीत पायेगा जो स्वयं निराशावादी है वह अपने अधीनस्थ सैनिकों में उत्साह उमंग का संचार नहीं कर सकेगा। राजा ने समर्थन करते हुए कहा कि बात तो ठीक है, लेकिन अब उसका स्थान कौन सम्भालेगा। यदि उसे हटा भी दिया जाता है तो इतने  कम समय में दूसरा सेनापति कहां मिलेगा उसी सेनापति से काम चलाने केअतिरिक्त कोई विकल्प दिखाई नहीं देता। इस पर फकीर ने उन्मुक्त हंसी हंसते हुए कही कि- आप चिन्ता नहीं करें, सेनापति का स्थान मैं सम्भालूंगा। राजा विस्मित हो गयालेकिन इसके अतिरिक्त और कोई चारा भी तो नहीं था। दूसरे दिन सेना ने कूच कर दिया, बीच राह में फकीर ने सामने के मन्दिर की ओर इशारा करते हुए कहा- रण से पूर्व इस मन्दिर केदेवता से पूछ लेते हैं कि जीत होगी या हार।यदि देवता जीत केलिए कह देते हैं तो फिर किसी का डर नहीं। दुश्मन की सेना कितनी ही विकट क्यों हो जीत निश्चित ही हमारी होगी। यदि नहीं तो फिर चलने से कोई लाभ नहीं। यह कहते हुए फकीर ने झोली से एक चमकता हुआ सिक्का निकाला और बताया कि अगर यह सिक्का चित्त गिरता है तो जीत हमारी ही होगी, यदि पट गिरेगा तो हम वापिस लौट जायेंगे। सिक्का चित्त गिरा था- जीत सुनिश्चित थी फकीर ने सबको उत्साहित करते हुए कहा, अब डरने की कोई बात नहीं, देवता का आश्वासन हमें मिल गया है। दोनों पक्षों केभयंकर संघर्ष के बाद जीत जापान के पक्ष में हुई। संघर्ष के बाद सैनिकों ने मन्दिर के पास पहुंचकर कही कि देवता को धन्यवाद दे दें जिसने हमें जिताया, फकीर नेकहा देवता को धन्यवाद देने की आवश्यकता नहीं बल्किअपने आपको धन्यवाद दो। तुम स्वयं हीअपनी जीत के आधार हो। जीत का देवता से कोई सम्बन्ध नहीं। यह कहतेहुए फकीर ने सिक्का पुन: झोली से निकालकर सैनिकों के हाथ पर रख दिया। सैनिकों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंनेदेखा कि सिक्के के दोनों और चित्त के निशान थे। यह और कुछ नहीं सैनिकों के सोये आत्मविश्वास को जगाने की एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया भर थी जो अन्तत: जीत का कारण बनी। संसार की महत्वपूर्ण सफलताओं का इतिहास आत्मविश्वास की गौरव गाथा से भरा हुआ है। उत्कर्ष व्यक्ति का करना हो, समाज का अथवा राष्ट्र का , सर्वप्रथम आवश्यकता है अपने अन्दर सोये आत्मविश्वास  रूपी देवता  को जगाया जाये। अनुदान वरदान सहज ही बरसते चले आयेंगे।

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