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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

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खेल मैदान ही नहीं हों तो स्‍कूलों में बच्‍चों का सर्वागीण विकास कैसे हो पाएगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। केरल हाईकोर्ट ने इसी आवश्‍यकता को महसूस करते हुए वहां राज्‍य सरकार को कहा  है कि जिन स्‍कूलों में खेल के मैदान नहीं है, उन्‍हें बंद कर देना चाहिए। साथ ही हाईकोर्ट ने सरकार को यह भी निर्देश दिया है कि वह हर श्रेणी के स्‍कूलों में खेल के मैदान बनाने और उनके आसपास होने वाली जरूरी सुविधाओं को तय करने के लिए समुचित दिशा-निर्देश जारी करें। केरल ही नहीं बल्कि कमोबेश यह प्रत्‍येक राज्‍य के स्‍कूलों से जुड़ा विषय है।  
 आम तौर पर स्‍कूलों से अपेक्षा की जाती हैं कि उनमें बच्‍चों के लिए पढ़ाई के साथ ही खेल सुविधाएं भी पूरी होगी। लेकिन, देखा यह गया कि ज्‍यादातर राज्‍यों में अधिकांश स्‍कूलों में बच्‍चों की खेलखूद गतिविधियों के लिए सम‍ुचित मैदान ही नहीं है। स्‍कूलों में खेल मैदान की अनिवार्यता को लेकर सरकारी तंत्र भी बेपरवाह दिखाई देता है। यह भी एक हकीकत हैं कि जिन स्‍कूलों में खेल मैदान है, उनका इस्‍तेमाल भी अन्‍य गतिविधियों में हो रहा है। कुछ स्‍कूलों में तो खेल मैदानों पर निर्माण करा कर उसका आकार ही घटा दिया गया है। शायद ही ऐसा मौका होगा, जब खेल मैदान के विषय को लेकर किसी स्‍कूल पर कोई कार्रवाई की गई हो। यह कहा जा सकता हैं कि अधिकतर स्‍कूलों की प्राथमिकता सूची से खेल मैदान होता ही नहीं। यों तो शिक्षा का अधिकार बच्‍चों का मौलिक अधिकार है। शिक्षा में खेल और अन्‍य पाठ्येतर गतिविधियां शामिल है। खेल के मैदान बच्‍चों को उनके शारीरिक सामाजिक, भावनात्‍मक और कल्‍पनाशील कौशल विकसित करने में मदद कर सकते है। शिक्षा के नाम पर बच्‍चों को सिर्फ कक्षाओं तक सीमित नहीं किया जा सकता है। इसी बात को महसूस करते हुए नई शिक्षा नीति में बच्‍चों के सर्वागीण विकास के लिए खेल को बहुत महत्‍व दिया गया है।  

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