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बंसोड कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 8982805777

created Apr 20th, 05:05 by neetu bhannare


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नदी भूतल पर प्रवाहित होने वाली एक जलधारा है। जो प्राय किसी झील हिमनद या झरने या बारिश के पानी से बनती है तथा अंत में किसी सागर अथवा झील में जा मिलती है। इसे सरिता तटिनी भी कहा जाता हैं। प्रमुख रूप से नदियां दो प्रकार की होती हैं। इनमें पहली सदानीरा दूसरी बरसाती कहलाती हैं। सदानीरा नदियां हमेशा झीलों झरनों अथवा हिमनदों से निकलती है या पैदा होती है और वर्ष भर जलपूर्ण रहती हैं। जबकि बरसाती नदियां बरसात के पानी पर निर्भर करती हैं। गंगा यमुना तथा कावेरी और नील आदि सदानीरा नदियां हैं। नदी के साथ इंसान का गहरा संबंध रहा है। नदियों से केवल फसल ही नहीं उपजाई जाती है अपितु वे एक समाज विशेष को पैदा करती है और फिर उसका पालन पोषण करती है। इसलिए इंसान हमेशा नदी को देवी अथवा मां के रूप में देखता आया है। हमारे अतीत में ऋषि मुनियों ने इन नदियों के किनारे रहकर ही ज्ञान को पाया। अभी भी बडे बडे विकसित महानगर नदियों के किनारे बसे हैं। मानव प्रजाति नदियों के किनारे ही फली फूली है। प्रकृति से विकसित एवं लगातार परिमार्जित मार्ग पर बहते पानी की अविरल धारा ही नदी है। जिसे कई बार बरसात भी पैदा करती है। नदियां आमतौर पर हिमनदों पहाडों अथवा झरनों से निकलकर सागर अथवा झील में समा जाती है। इस यात्रा में उसे अनेक सहायक नदियां मिलती हैं। नदी और उसकी सहायक नदियां मिलकर नदी तंत्र बनाती है। जिस इलाके का सारा पानी नदी तंत्र को मिलता है वह इलाका जल निकास घाटी यानि वाटरशेड कहलाता है। नदी जल निकास घाटी पर बरसे पानी को एकत्रित करती है। उसे प्रवाह में शामिल कर आगे बढती है। वही उसके पानी की प्रगति का आधार होता है। नदी को अपनी यात्रा में बाढ के पानी के अलावा भू जल से संबंधित दो प्रकार के माहौल मिलते हैं। पहला माहौल जिसमें भू जल भंडारों का पानी बाहर आकर नदी को मिलता है। दूसरा माहौल जिसमें नदी में बहते प्रवाह का पूरा या कुछ भाग रिसकर भू जल भंडारों को मिलता है। नदी दोनों ही माहौलों का सामना करते हुए आगे बढती है। नदी का प्रवाह माटी के कटाव चटटानों के बर्बाद होने से मिलने वाले मलबे तथा वृक्षों पौधों के बचे खुचे भागों को बहाकर आगे ले जाता है। उसका एक भाग सतही रन आफ और दूसरा भाग भू जल प्रवाह कहलाता है। प्रवाह के इस विभाजन को प्रकृति नियंत्रित करती है। बरसात में सतही रन आफ और बाकी दिनों में धरती की कोख से रिसा भू जल ही नदी में बहता है। अनुमान है कि नदी तल के उपर बहने वाले रन आफ और नदी तल के नीचे बहने वाले भू जल का अनुपात है आठ अनुपात एक। वर्णनीय है कि भू जल प्रवाह बल के प्रभाव से जल लगातार निचले इलाको की ओर बहता है। उसकी  इस यात्रा में कुछ पानी नदी के प्रवाह के रूप में सतह पर तथा बाकी भाग नदी तल के नीचे नीचे चलकर समुद्र में समा जाता है। नदी के सूखने के बावजूद नदी तल के नीचे पानी का प्रवाह बना रहता है। नदी अपने जलग्रहण क्षेत्र पर बरसे पानी को बडी नदी झील अथवा  समुद्र में जमा करती है पर कभी कभी उसके मार्ग में रेतीले क्षेत्र जाते है और वह सूख जाती है।
 

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