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बंसोड कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 प्रवेश प्रारंभ (सीपीसीटी, एवं TALLY ) MOB. NO. 8982805777

created Apr 13th, 03:33 by shilpa ghorke


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क्‍या शुष्‍क वायुमण्‍डल में आर्द्रता उत्‍पन्‍न की जा सकती है,  क्‍या सुखे आसमान से वर्षा हो सकती है,  यह प्रश्‍न इस प्रकार ही है, जिस प्रकार कि यह पूछना कि, क्‍या कठोर प्रकृति कोमल बनाई जा सकती है। मोटेतौर से यह प्रतीत होता है कि आधार हो तो परिणाम कैसे उत्‍पन्‍न हो सकता है, पर वात यह है नहीं प्रकृति के अन्‍तराल का गहन अध्‍ययन करें तो प्रतीत होगा कि सर्वत्र बीज रूप से सभी पदार्थ और सभी परिस्थितियां मौजूद है। किसी वस्‍तु का कहीं पूर्णतया अभाव नहीं। बीज रूप से हर वस्‍तु हर जगह विद्यमान है। जो नहीं है, उसे भी प्रयत्‍न करने पर उगाया जा सकता है। कृत्रिम वर्षा के प्रयोग अब अधिक सफल होते जा रहे है और जहा बादल नहीं है, वहा बादल लाने तथा जिन बादलों में पानी नहीं है, उनमें बरसने वाली घटा उत्‍पन्‍न करना अब शक्‍य और प्रत्‍यक्ष होता जा रहा है। सोडियम क्‍लोराइड भरे गुब्‍बारे आकाश में उडाते है, वे एक निश्चित ऊंचाई पर जाकर अपने आप फट जाते है और वह नमक उस क्षेत्र में उड़ने वाले बादलों पर छिडक जाता है और वर्षा होने लगती है। कृत्रिम वर्षा की दूसरी विधि है,  रासायनिक पदार्थ के संयोग से कृत्रिम बादल बनाना। हवा में जो नमी  होती है, उसे एक जगह एकत्रित करने वाले रसायन यदि बखेर दिये जायं तो समुद्र से उठने वाले मानसून की प्रतीक्षा करनी पडेगी, स्‍थानीय वायु में भरा हुआ जल अंश ही घन होकर बादलों के रूप में प्रकट होगा। कार्बन डाई आक्‍साइड को घनीभूत करके सूखी बर्फ की तरह जमा लिया जाता है और उसका बुरादा बादलों पर छिड़का जाता है, इससे वे वर्षा करने की स्थिति में जाते है। सिल्‍वर आक्‍साइड का धुंआ छोड़ने से भी यही प्रयोजन पूरा हो सकता है। छोटे जल कणों को परस्‍पर एकत्रित होकर बडे़ जल कणों का रूप बना लेने और बूंद बनकर बरसने लगने की पृष्‍ठभूमि उपरोक्‍त रसायनों से बनाई जा सकती है। एक प्रयोग यह है कि जलता हुआ तेल आकाश में छोड़कर उस धुंए से बादलों को आकर्षित किया जाय। यह प्रयोग अमेरिका में पूर्ण सफल रहा है। यज्ञ से वर्षा होने की बात भी इसी आधार पर साबित होती है। प्राचीन भारत के विज्ञानी इस रहस्‍य से परिचित थे। इसलिए उन्‍होंने धार्मिक और आध्‍यात्मिक प्रयोजन के साथ साथ उपयुक्‍त वर्षा कराने वाली प्रक्रिया का यज्ञ रूप में विकास किया। कृत्रिम वर्षा का शोधकार्य भारत में भी चल रहा है। कौंसिल आफ सांइटिफिक एण्‍ड इण्डिस्टियल रिसर्च ने इसके लिए एक विशेष व्‍यवस्‍था की है। उसका नाम है,  रेन एण्‍ड क्‍लाइड रिसर्च यूनिट। अन्‍य देशों में भी इस प्रकार के प्रयोग चल रहे है कि वर्षा कराने या रोकने का अधिकार अकेले इन्‍द्र देवता के हाथों में ही रहे, वरना मनुष्‍य भी उसका अधिकारी,  हिस्‍सेदार बन जाय। मनुष्‍य की प्रकृति जन्‍मजात होती है और वह बदली नहीं जा सकती। समाज की परिस्थितियां युग का परिपाक है,  हम उसमें क्‍या कर सकते है, यह दोनों ही विचार निरर्थक और निराशावादी है। कृत्रिम वर्षा के सफल प्रयोगों पर दृष्टिपात करें तो यह आशा सहज ही वैध सकती है कि मानवी प्रकृति और समाज की परिस्थितियों को अभीष्‍ट दिशा में मोडा  मरोडा नहीं जा सकता।

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