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Malti Computer Center Tikamgarh

created Apr 12th, 02:58 by Ram999


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इस तथ्य पर विचार करने से पहले श्याम विवर को समझते है। किसी श्याम विवर के बनने का सबसे सामान्य तरीका किसी महाकाय तारे का केंद्रक का अचानक संकुचित होना है। इन महाकाय तारों मे एक साथ दो बल कार्य करते रहते हैं, उनका गुरुत्वाकर्षण तारे को संकुचित करने का प्रयास करते रहता है। संकुचन के कारण ताप उत्पन्न इस तथ्य पर विचार करने से पहले श्याम विवर को समझतेहै। किसी श्याम विवर के बनने का सबसे सामान्य तरीका किसी महाकाय तारे का केंद्रक का अचानक संकुचित होना है। इन महाकाय होता है और यह ताप इतनी अधिक होता है कि तारे के केंद्रक में हायड्रोजन के नाभिक आपस मे मिलकर हीलियम बनाना प्रारंभ करते हैं। हायड्रोजन से हीलियम बनने की प्रक्रिया को नाभिकिय संलयन कहते हैं। इस संलयन प्रक्रिया से भी ताप उत्पन्न होती है। हम जानते हैं कि उष्ण होने पर पदार्थ फेलता है। गुरुत्वाकर्षण से संकुचन, संकुचन से ताप, ताप से संलयन, संलयन से ताप, ताप से फेलाव का एक चक्र बन जाता है। गुरुत्वाकर्षण से संकुचन और संलयन से फेलाव का एक संतुलन बन जाता है और तारे अपने हायड्रोजन को जलाकर हीलियम बनाते हुये इस अवस्था मे लाखों वर्ष तक चमकते रहते हैं। जब तारे का इंधन समाप्त हो जाता है तब यह संतुलन अस्तव्यस्त हो जाता है। इस अवस्था में एक सुपरनोवा विस्फोट होता है, जिसमें तारे की सतहें दूर फेंक दी जाती है और केंद्र अचानक तेज गति से संकुचित हो जाता है। इस संकुचित केंद्र का गुरुत्वाकर्षण अधिक हो जाता है। यदि तारे के संकुचित होते हुये केंद्रक का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से तीन गुणा हो तो उसकी सतह पर गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक हो जाता है कि पलायन वेग प्रकाश गति से भी अधिक हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि इस पिंड के गुरुत्वाकर्षण से कुछ भी नहीं बच सकता है, प्रकाश भी नहीं। इस कारण यह पिंड काला होता है। श्याम विवर के आसपास का वह क्षेत्र जहां पर पलायन वेग प्रकाश गति के बराबर हो घटना क्षितिज कहलाता है। इस सीमा के अंदर जो भी कुछ घटित होता है वह हमेशा के लिये अदृश्य होता है।अब हम जानते हैं कि श्याम विवर कैसे बनते है। अब हम जानते हैं कि इनका गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव इतना अधिक क्यों होता है। गुरुत्वाकर्षण दो चीजों पर निर्भर करता है, पिंड का द्रव्यमान तथा उस पिंड से दूरी। तारे का केंद्रक का द्रव्यमान स्थिर है, बस वह संकुचित हुआ है। द्रव्यमान स्थिर है,तो इसका अर्थ यह है कि उसका गुरुत्वाकर्षण भी स्थिर है। लेकिन संकुचित केंद्रक का आकार कम हो गया है, अर्थात कोई अन्यपिंड उस संकुचित केंद्रक के अधिक समीप जा सकता है। कोई अन्यपिंड उस संकुचित केंद्रक के जितने ज्यादा समीप जायेगा उस पर संकुचित केंद्र का गुरुत्वाकर्षण उतना अधिक प्रभावी होगा। और एक दूरी ऐसी भी आयेगी जब उसका गुरुत्वाकर्षण इतना प्रभावी हो जायेगा कि वह पिंड संकुचित केंद्र की चपेट में जायेगा। श्याम विवर के मामले में ऐसा होता है कि संकुचित केंद्र इतना ज्यादा संकुचित हो जाता है कि घटना क्षितिज की सीमा के अंदर प्रकाश कण भी श्याम विवर के गुरुत्वाकर्षण की चपेट में जाते हैं। श्याम विवर का द्रव्यमान मायने नही रखता है, उस द्रव्यमान का एक छोटे से हिस्से में संकुचित होना महत्वपूर्णहै।

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