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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Apr 10th, 07:03 by lucky shrivatri


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प्रथम शैलपुत्री- आघा शक्ति का प्रथम स्‍वरूप शेलपुत्री का माना जाता है। जब स्‍त्री का जन्‍म होता है तो वह बाल्‍यकाल में अपने माता-पिता के स्‍नेह से पुष्पित पल्‍लवित होती रहती है, उस समय जो कन्‍या का स्‍वरूप होता है। कन्‍या का स्‍वरूप होता है वही मां शैलपुत्री का स्‍वरूप है। कन्‍या बाल लीला कर मोहित करती है। उसकी प्रसन्‍नता से घर में सकारात्‍मक ऊर्जा आती है।  
द्वितीय ब्रह्मचारिणी- ब्रह्म चारयितुं शीलं यस्‍या: सा ब्रह्मचारिणी। शिव को पाने हेतु मां पार्वती ने तप किया था, इस कारण वह तपस्विनी स्‍वरूपा है। स्‍त्री भी इसी तरह किसी भी लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए उपवास, धार्मिक कर्मो में रत रहती हैं। परिवार के कल्‍याण के लिए जप-तप में लीन रहती हुई, तपस्‍या में संलग्‍न आज की नारी में मां बह्मचारिणी शक्ति का स्‍वरूप परिलक्षित होता है।
तृतीय चन्‍द्रघण्‍टा- चन्‍द्र: घण्‍टायां यस्‍या: सा चन्‍द्रघण्‍टा। आहादकारी चन्‍द्रमा जिनकी घण्‍टा में स्थिति, हो उन देवी का नाम 'चन्‍द्रघण्‍टा' है। माता के सिर पर अर्धचंद्र स्‍वरूप विघमान है। जब स्‍त्री मंगल सूचक आभूषण या कोई चिन्‍ह धारण करती है तो उसकी ध्‍वनि एवं उत्‍साह के घण्‍टानाद से ही शत्रु परास्‍त  हो जाते हैं। उसका ओजस्‍वी स्‍वरूप साक्षात् चन्‍द्रघण्‍टा देवी का है।  
चतुर्थ कूष्‍माण्‍डा- त्रिविध तापयुक्‍त संसार जिनके उदर में स्थित है, वे भगवती 'कूूष्‍माण्‍डाा' कहलाती  हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्‍ड की उत्‍पत्ति मां कूष्‍माण्‍डा के उदर से हुई। सृष्टि करने एवंं जन्‍म देने की शक्ति भी स्‍त्री में ही होती है, गर्भवती स्‍त्री कूष्‍माण्‍डा देवी के स्‍वरूप में वंदनीय है। गर्भवती की प्रसन्‍नता में माता कूष्‍माण्‍डा की प्रसन्‍नता प्रतीत होती है।  
पंंच्‍चम स्‍कन्‍दमाता- कार्तिकिय की माता होने से शक्ति 'स्‍कन्‍दमाता' कहलाती हैं। मातृस्‍वरूपा की आराधना से स्‍वत: सभी सिद्धियांं प्राप्‍त होती है। प्रत्‍येक स्‍त्री जो किसी बालक को जन्‍म देती है तथा उसका भरण पोषण करती है, स्‍वयं से पहले अपनी संतान को सुख प्रदान करने का प्रयास करती हैं, ऐसी कामकानजी महिलाओं में स्‍कन्‍दमाता का स्‍वरूप परिलक्षित है।  
छ: कात्‍यायनी- देवताओंं का कार्य सिद्ध करने के लिए देवी महर्षि कात्‍यायन के आश्रम में प्रकट हुई। महर्षि ने उन्‍हें अपनी कन्‍या माना, इसलिए 'कात्‍यायनी नाम से प्रसिद्ध हुई। स्‍त्री जब अपने परिवार, मित्र जनों एवं सहयोगियों की मदद करते हुए स्‍वयं संघर्षो से जूझती है तथा विजय को प्राप्‍त करती है तो इस पराक्रम में कात्‍यायनी का स्‍वरूप झलकता है।  
सप्‍तमी कालरात्रि- काल या बुरी शक्तियों का नाश करने वाली होने के कारण इन्‍हें कालरात्रि कहा जाता है। जब एक नारी के परिवार में पति या संतान पर कोई आपत्ति आती है तो वह स्‍वयं कठिनाइयों का सामना करती हुई, स्‍वयं के प्रति  हो रहे अत्‍याचार के विरूद्ध आवाज उठाती है। वह इस अदम्‍य साहस एवं रौद्र रूप में साक्षात कालरात्रि है।  
अष्‍टमी महागौरी- जब शक्ति ने तपस्‍या द्वारा गौरवर्ण प्राप्‍त किया था तब वह महागौरी कहलाई। उसी प्रकार से नारी भी जब अपने ध्‍येय को प्राप्‍त करने के लिये तपस्‍या, अनुष्‍ठान पूर्ण कर या कठोर संघर्ष कर अपने उदृेश्‍य को प्राप्‍त करती है या किसी पद पर आसीन होकर कीर्ति सम्‍मान प्राप्‍त करती है, तो महागौरी स्‍वरूपा प्रतीत होती है।  
नवमी सिद्धिदात्री- सिद्धि अर्थात् मोक्ष प्रदान करने वाली होने के कारण देवी का नाम 'सिद्धिदात्री' है। इनको  सभी सिद्धियांं प्रदान करने वाली कहा जाता है। जब स्‍त्री माता के स्‍वरूप में आशीष और अभय का दान प्रदान करती है, अपने हृदय से परिवार जनो, सुहृदजनों (मित्र) को आशीर्वाद दे मार्ग प्रदर्शित करती है तो सिद्धिदात्री प्रतीत होती है।                    

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