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JR CPCT INSTITUTE, TIKAMGARH (M.P.) || CPCT ADMISSION OPEN || माार्गदर्शन हमारा- सफलता आपकी MOB. 9399470596

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क्रोध एक भयंकर शत्रु है। क्रोध में आकर मनुष्य अपना सर्वनाश कर बैठता है। जिस मनुष्य पर क्रोध का भूत सवार हो जाता है उसका विवेक ज्ञान नष्ट हो जाता है। वह सुपथ को त्याग कुपथ को ग्रहण करता है और अन्त में नाश को प्राप्त होता है। क्रोधी व्यक्ति अन्धे और बहरे की तरह चेतन रहते हुए भी अचेतन के समान कोई भी कर्त्तव्य स्थिर करने में असमर्थ होता है। क्रोधी मनुष्य को उचित अनुचित का ध्यान नहीं रहता। वह सदा डांवाडोल रहता है, कभीकभी तो वह पागल होकर मर तक जाता है। क्रोधी मनुष्य शारीरिक, मानसिक, नैतिक या अध्यात्मिक किसी भी प्रकार की उन्नति नहीं कर सकता। क्रोध दुर्भाग्य की तरह जिस पर सवार होता है उसका विनाश करके मानता है। यह लकवे की तरह उन्त में अंगों को शक्तिहीन करके देता है। क्रोधावेश में प्रथम तो मनुष्य नशे की तरह उत्तेजित होता है और अपने अन्दर कई गुनी कार्यशक्ति अनुभव करने लगता है, किन्तु अन्त में क्रोध का है नशा उतरते ही वह निर्बल हो जाता है। शराबी की तरह वह दुबलापतला हो जाता है, मस्तिष्क एवं विचार शक्ति क्षीण हो जाती है। यह क्षणभर का आवेग दीर्घकालीन पश्चाताप का कारण बन जाता है। बाइबिल के मनुष्य क्रोधावस्था में शयन करना मानो वह विषधर सर्प को अपनी बगल में दबाकर सोना है। सचमुच क्रोध विषधर से किसी प्रकार कम नहीं है। विषधर तो शरीरान्त करता है किन्तु क्रोध धीरेधीरे कष्ट पहुंचाता हुआ देह एवं आत्मा दोनों का पतन करता है। इसका कष्ट चिरकालीन होता है। अत: यह सर्प से भी भयंकर शत्रु है। केलूलैंड के अरोली ने इस संबंध में कई तरह के परीक्षण किये हैं। उनका कथन है कि क्रोध के कारण खून में शक्कर की अधिकता हो जाने से कुछ वह तेजाब पैदा हो जाते हैं जो स्वास्थ्यके लिए अत्यन्त हानिकारक और घातक हैं। यही वजह है कि उन्नतिशील पाश्चात्य देशों में शारीरिक दण्ड की घृणित प्रथा स्कूलों से उठती जा रही है। किन्तु खेद है कि हमारे देश में अब भी इस घातक दण्ड प्रणाली का लंबे समय से बोलबाला है जिसके फलस्वरूप बालक अपना विकास पूर्णरूपेण नहीं कर सकते, आवश्यकता है कि मातापिता और शिक्षक इन नवीन गवेषणाओं से फायदा उठाकर बालकों को डराना या उन पर हाथ उठाना अक्षम्य अपराध समझें। क्रोध से बचने का स्थायी और वास्तविक उपाय तो यही है कि हम क्रोध के कारण को मालून करने की कोशिश करें। क्रोध का आरम्भ या ता मूर्खता से या दुर्बलता से अथवा मानव स्वभाव से अनभिज्ञता के कारण होता है। अब कोई व्यक्ति हमारा कहना नहीं मानता या हमारी इच्छा के विपरीत काम करता है तो हम आपने से बाहर हो जाते हैं और उस पर बेतहाशा बरस उठते हैं। हम यह समझने की तकलीफ ही नहीं करते कि हमें दूसरों को अपनी इच्छानुसार चलाने का क्या अधिकार है। हम अपने रोजमर्रा के अनुभव से भली प्रकार जान सकते हैं कि प्रत्येक मनुष्य की वृत्ति दूसरे मनुष्य से भिन्न होती है, मनोविज्ञान की इस अटल अलवधारणा को समझ लें तो हम बहुत हद तक क्रोध के चंगुल में से बच सकते हैं और आनन्द से जीवन व्यतीत कर सकते हैं।  
 

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