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Malti Computer Center Tikamgarh

created Apr 9th, 02:27 by Ram999


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गर्मी का मौसम आने के साथ ही, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने पिछले साल के मुकाबले ज्यादा लू चलने की चेतावनी दी है। आंध्र प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के खास तौर पर इसकी चपेट में आने का अनुमान है। जब किसी जगह दिन-का-तापमान लगातार दो दिन सामान्य से कम से कम 4.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर या 45 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रहता है, तो इसे लू-भरे दिनों के रूप में परिभाषित किया जाता है। अभी निरंतर कई सालों से, आईएमडी तपिश भरी गर्मियों की भविष्यवाणी करता रहा है। कारण कई हैं। भारत ‘अल नीनो’ की लहर से जूझ रहा है, जो ज्यादातर सालों में, बारिश में कमी लाती है और तापमान बढ़ाने में योगदान देती है। वैसे तो अल नीनो और इसकी उलटी परिघटना ‘ला नीना’ चक्रीय हैं, लेकिन तापमान बढ़ाने वाली ज्यादा बड़ी परिघटना (अल नीनो) की वजह से आर्कटिक में बर्फ पिघलने की रफ्तार तेज हो रही है, नम उष्णकटिबंधीय हवाएं खुश्क हो रही हैं और नतीजतन, कम बादल बन रहे हैं और इस तरह, शुष्क एवं झुलसाने वाले भू-ताप की मार झेलनी पड़ रही है।
इस साल, मौसम विभाग की चेतावनी ज्यादा डराने वाली है, क्योंकि अप्रैल और मई की कई दुपहरियों में भारत में मतदान केंद्रों के बाहर करोड़ों लोग कतारों में होंगे। पिछले साल अप्रैल की एक दुपहरी में, नवी मुंबई में खुले आसमान तले हो रहे एक सार्वजनिक, राजनीतिक कार्यक्रम में शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) से 12 लोगों की मौत हो गयी थी और 600 को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। दरअसल, इस आपदा के घटित होने से पहले कुछ वक्ताओं ने गर्मी का ‘बहादुरी से मुकाबला करने’ के लिए भीड़ को बधाई भी दी थी। यह दिखाता है कि सरकारी तंत्र सार्वजनिक स्वास्थ्य पर लू के प्रभावों की किस हद तक उपेक्षा करता है। उदाहरण के लिए, इस चुनावी साल में भारत का निर्वाचन आयोग आईएमडी की गर्मी की सार्वजनिक चेतावनियों से पहले ही राज्य चुनाव अधिकारियों को भीषण तपिश के बीच मतदान की तैयारी का परामर्श जारी कर चुका था। समस्या यह है कि ये परामर्श बिल्कुल आम किस्म के हैं। एक घिसे-पिटे नोट में ओरल रिहाइड्रेशन सप्लीमेंट्स [ओआरएस वगैरह] मुहैया कराने और माताओं को अपने साथ बच्चों को मतदान केंद्रों पर लाने से बचने के लिए कहा गया है। इसमें ऐसी कोई आवश्यकता नहीं बतायी गयी है कि मतदान केंद्र अधिकारियों के बैठने की जगह के परे भी शीतलन को प्राथमिकता दें। कई सालों से, प्रमुख राजनेताओं द्वारा भी, यह सुझाव दिया जाता रहा है कि चुनाव को फरवरी-मार्च या अक्टूबर-नवंबर के अपेक्षाकृत सुहाने मौसम में कराया जाए, लेकिन मतदान खत्म होते ही यह चर्चा ठंडी पड़ जाती है। भारत के आकार और आयोजन संबंधी चुनौतियों के मद्देनजर चुनाव प्रक्रिया में नवाचार देखने को मिला है और बहु-चरणीय मतदान और यहां तक कि इलेक्ट्रॉनिक बैलेट के इस्तेमाल जैसे उपाय अपनाये गये हैं। हर साल तापमान का रिकॉर्ड टूटने तथा लू, जलवायु एवं स्वास्थ्य के बीच संबंध और भी ज्यादा स्पष्ट होने के साथ, अब वक्त गया है कि चुनाव प्रक्रिया इस संकट से निपटने के लिए रचनात्मक तरीकों पर विचार करे।

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