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Malti Computer Center Tikamgarh
created Apr 8th, 02:38 by Ram999
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हम सालों से यह जानते रहे है कि बृहस्पति के चन्द्रमा यूरोपा में ठोस जमी हुयी सतह के नीचे द्रव जल का महासागर है। यूरोपा की लगभग पूरी सतह ठोस बर्फ से बनी हुयी है। हम यह भी जानते हैं कि इस सतह पर हजारो दरारें है जो पृथ्वी पर पानी पर तैरती बर्फ की परतों पर की दरारों की तरह ही हैं। यूरोपा पर बृहस्पति और अन्य चंद्रमाओं के गुरूत्वीय खिंचाव के कारण उसका आंतरिक भाग गर्म होता है। लेकिन एक प्रश्न जो मानव मन को मथता रहा है, वह यूरोपा की
बर्फ की सतह की मोटाई को लेकर है। यह बर्फ की सतह कुछ किलोमीटर मोटी होने या वह एक पतली परत मात्र होने के समर्थन में प्रमाण मौजूद हैं, जो रहस्य को गहरा करते हैं। यूरोपा की सतह का अध्ययन करते खगोलविज्ञानियों के अनुसार यह बर्फ की परत साधारणत: बहुत मोटी है और इस सतह के नीचे द्रव जल की झीलें होनी चाहिए। गैलीलीयो अंतरिक्षयान ने बृहस्पति की कई सालों तक परिक्रमा की थी जिससे पता चला कि यूरोपा की अधिकतर सतह सपाट और व्यवस्थित हैं। यूरोपा पर बृहस्पति और अन्य चंद्रमाओं के गुरूत्वीय खिंचाव के कारण उसका आंतरिक भाग गर्म होता है। लेकिन एक प्रश्न जो मानव मन को मथता रहा है, वह यूरोपा की जोकि एक बर्फ की मोटी सतह से अपेक्षित है। लेकिन कुछ छोटे भाग अव्यवस्थित हैं और यह क्षेत्र सतह के नीचे के द्रव जल की वजह से है। भूभाग के नीचे का यह जल विशालकाय झीलों के रूप में है जो बर्फ की सतह से ढंका है, इन झीलों का आकार उत्तरीअमरीका की विशालकाय झीलों के समान है। यूरोपा पर भूमीगत झींलों की संरचनाएं हैं। सामान्यत: यूरोपी की सतह पर बर्फ की परत मोटी है जो कि यूरोपा की सतह के दिखायी देने वाले स्वरूप के अनुरूप है। लेकिन कुछ विशेष क्षेत्रों में बर्फ सतह के नीचे बर्फ पिघल कर द्रव जल में परिवर्तित हो गयी है। इस झील पर बर्फ की सतह पतली है और लगभग 3 किमी मोटी है। इससे इन विशेष क्षेत्रों की अव्यवस्थित दशा के कारणों का पता चलता है। लेकिन यह इतना महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि हम जानते हैं कि पृथ्वी पर जीवन के विकास के लिये सबसे महत्वपूर्ण कारक द्रव जल की उपस्थिति है। और हम जानते हैं कि यूरोपा पर द्रव जल की झीले हैं। लेकिन यह द्रव जल बर्फ की ठोस परत के नीचे है।सतह पर सूर्य प्रकाश जीवन के लिये आवश्यक रसायनों के निर्माण में मदद करता है लेकिन बर्फ की सतह के नीचे इन विशेष क्षेत्रों में जहां पर बर्फ की परत पतली है, यह रसायन सतह के नीचे द्रव जल तक पहुंच सकते हैं। इन झीलों से ये रसायन और भी नीचे पानी के महासागर तक पहुंच सकते हैं। मनोरंजक तथ्य है कि इस उपग्रह का मैकुलाथेरा नाम क्षेत्र यह दर्शाता है कि इस में झील अपने निर्माण के दौर में ही है। यह वर्तमान में जारी प्रक्रिया है। इसका अर्थ यह है कि वर्तमान में, आज भी जीवन के लिये आवश्यक रासायनिक प्रक्रियायें जारी है। यूरोपा की सतह के नीचे के जल को यह वर्तमान में भी रसायन प्रदान हो रहे हैं। ध्यान दें कि इसका अर्थ यह नही हैं कि यूरोपा में जीवन है लेकिन यहां पर जीवन की संभावनायें पहले से कहीं ज्यादा हैं।
बर्फ की सतह की मोटाई को लेकर है। यह बर्फ की सतह कुछ किलोमीटर मोटी होने या वह एक पतली परत मात्र होने के समर्थन में प्रमाण मौजूद हैं, जो रहस्य को गहरा करते हैं। यूरोपा की सतह का अध्ययन करते खगोलविज्ञानियों के अनुसार यह बर्फ की परत साधारणत: बहुत मोटी है और इस सतह के नीचे द्रव जल की झीलें होनी चाहिए। गैलीलीयो अंतरिक्षयान ने बृहस्पति की कई सालों तक परिक्रमा की थी जिससे पता चला कि यूरोपा की अधिकतर सतह सपाट और व्यवस्थित हैं। यूरोपा पर बृहस्पति और अन्य चंद्रमाओं के गुरूत्वीय खिंचाव के कारण उसका आंतरिक भाग गर्म होता है। लेकिन एक प्रश्न जो मानव मन को मथता रहा है, वह यूरोपा की जोकि एक बर्फ की मोटी सतह से अपेक्षित है। लेकिन कुछ छोटे भाग अव्यवस्थित हैं और यह क्षेत्र सतह के नीचे के द्रव जल की वजह से है। भूभाग के नीचे का यह जल विशालकाय झीलों के रूप में है जो बर्फ की सतह से ढंका है, इन झीलों का आकार उत्तरीअमरीका की विशालकाय झीलों के समान है। यूरोपा पर भूमीगत झींलों की संरचनाएं हैं। सामान्यत: यूरोपी की सतह पर बर्फ की परत मोटी है जो कि यूरोपा की सतह के दिखायी देने वाले स्वरूप के अनुरूप है। लेकिन कुछ विशेष क्षेत्रों में बर्फ सतह के नीचे बर्फ पिघल कर द्रव जल में परिवर्तित हो गयी है। इस झील पर बर्फ की सतह पतली है और लगभग 3 किमी मोटी है। इससे इन विशेष क्षेत्रों की अव्यवस्थित दशा के कारणों का पता चलता है। लेकिन यह इतना महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि हम जानते हैं कि पृथ्वी पर जीवन के विकास के लिये सबसे महत्वपूर्ण कारक द्रव जल की उपस्थिति है। और हम जानते हैं कि यूरोपा पर द्रव जल की झीले हैं। लेकिन यह द्रव जल बर्फ की ठोस परत के नीचे है।सतह पर सूर्य प्रकाश जीवन के लिये आवश्यक रसायनों के निर्माण में मदद करता है लेकिन बर्फ की सतह के नीचे इन विशेष क्षेत्रों में जहां पर बर्फ की परत पतली है, यह रसायन सतह के नीचे द्रव जल तक पहुंच सकते हैं। इन झीलों से ये रसायन और भी नीचे पानी के महासागर तक पहुंच सकते हैं। मनोरंजक तथ्य है कि इस उपग्रह का मैकुलाथेरा नाम क्षेत्र यह दर्शाता है कि इस में झील अपने निर्माण के दौर में ही है। यह वर्तमान में जारी प्रक्रिया है। इसका अर्थ यह है कि वर्तमान में, आज भी जीवन के लिये आवश्यक रासायनिक प्रक्रियायें जारी है। यूरोपा की सतह के नीचे के जल को यह वर्तमान में भी रसायन प्रदान हो रहे हैं। ध्यान दें कि इसका अर्थ यह नही हैं कि यूरोपा में जीवन है लेकिन यहां पर जीवन की संभावनायें पहले से कहीं ज्यादा हैं।
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