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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Mar 28th, 08:46 by lucky shrivatri


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पहले बयानबाजी करते वक्‍त भाषाई शिष्‍टचार की तमाम सीमाएं लांघ दो और बवाल उठे तो ऐसे बयानों से या तो किनारा कर लो या फिर माफी मांग कर ठंडे छीटे डालने की कोशिश करने लगो। मौका चुनाव का हो तो नेताओं में यह शगल ज्‍यादा ही नजर आने लगता है। लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार का दौर शुरू होने के साथ ही बिगड़ बोल बता रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट तक की ओर सरकारों को दी नसीहतों के बावजूद नेताओं की एक-दूसरे को नीचा दिखाने और अपमानित करने की दुष्‍प्रवृत्ति कम होने का नाम नहीं ले रही है।  
ताजा प्रकरण पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा क्षेत्र से भाजपा उम्‍मीदवार कंगना रनौत से जुड़े हैं जहां दोनों ही नेत्रियों को लेकर अमर्यादित टि‍प्‍पणियां प्रतिद्वंद्वी दलों के नेताओं की तरफ से की गई है। बयानबाजी कहीं लिखित तो कहीं मौखिक रूप से की गई और उसके बाद सफाई पेश करने का काम भी खुब हुआ। लेकिन क्‍या महज सफाई देने से ऐसे बयानों को लेकर माफी दे दी जानी चाहिए? ये सवाल इसलिए भी क्‍योंकि बरसों से यही बात सुनते आए हैं कि जब तीर कमान से और बात जुबान से एक निकल जाए तो फिर वापस नहीं होती। कोई लाख सफाई देने लगे पर लिखी और कहीं गई से जो जख्‍म लगते हैं उन्‍हें आसानी से भरा नहीं जा सकता। अभिव्‍यक्ति की आजादी का मतलब यह कतई नहीं समझा जाना चाहिए कि वर्ग समुदाय में संघर्ष पैदा करने वाले और दूसरों के मान-सम्‍मान को ठेस पहुंचाने वाले बयान स्‍वीकार किए जाएं। तभी तो सुप्रीम कोर्ट पहले ही केन्‍द्र राज्‍य सरकारों को कह चुका हैं कि वे जहरीले बोल के मामलों में स्‍वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेकर कार्रवाई करें। यानी शिकायत भी मिले तो ऐसे एकसाने वाले अपमानजनक बयान देने वालों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की जानी चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों की भी अवहेलना होते दिखने लगे तो ऐसा लगता है कि राजनेताओं को तो अदालतों की परवाह हैं और ही कानून का डर।  
चुनाव के मौकों पर हेट स्‍पीच देने वाले नेता खुद के प्रचार की मंशा तो रखते ही है, कई बार उनके ऐसे बयान उम्‍मीदवारों को चुनावी  फायदा तक पहुंचाते नजर आते है।   
 
 
 
 

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