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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Mar 26th, 11:27 by rajni shrivatri


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देसी सिलिकॉन के नाम से विश्रुत बेंगलूरू में जल संकट गंभीर समस्‍या बनी हुई है। बेंगलूरू और देश के अन्‍य महानगरों में ही नहीं, पूरी दुनिया में जल संकट गहराता जा रहा है। जल संकट पर संयुक्‍त राष्‍ट्र की ताजा रिपोर्ट भी चौकाने वाली है। दरअसल, पिछले कुछ देशकों में शहरीकरण पर काफी जोर दिया गया जबकि जल स्‍त्रोत के संरक्षण और बेहतर जल प्रबंधन को लेकर उदासीनता बनी रही। शहरीकरण से आर्थिक गतिविधियों को तो बढ़ावा मिला मगर पानी जैसी मूलभूत जरूरत को पूरा करने के लिए कोई दीर्घकालिक और दूरदर्शी नीति नहीं अपनाई गई। विकास की राह पर सरपट दौड़ते बेंगलूरू जैसे महानगरों के जल संकट के पीछे शहरों के विकास और विस्‍तार को लेकर दीर्घकालिक नीतियों का अभाव सबसे बड़ा कारण है। विकास के साथ शहरों में गगनचुंबी इमारतो की संख्‍या बढ़ने के साथ ही रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी समस्‍याएं भी बढ़ती गई। पहले शहरों का विकास क्षैतिज होता था मगर अब ऊर्ध्‍वाधर होता है। उर्ध्‍वाधर विकास छोटी जगह में बड़ी-बड़ी इमारतें बनती है और वहां काफी संख्‍या में लोगों के रहने की व्‍यवस्‍था होती है जबकि क्षैतिज विकास में बड़ी जगह में छोटे महान बनते थे यानी ज्‍यादा जगह में कम लोग रहते थे। किसी भी जगह जमीन में पानी जैसे संसाधनों की सीमा सीमित होती है मगर शहरी विकास की योजना तैयार करते समय इन बिंदुओं पर ध्‍यान नहीं दिया जाता कि वहां उपलब्‍ध प्राकृतिक संसाधनों से कितनी आबादी की आवश्‍यकता पूरी हो सकती है। शहरों ही नहीं, अब गांवों में भी पोखर, तालाब जैसे स्‍त्रोतों की संख्‍या दिन-ब-दिन घटती जा रही है। विकास की दौड़ में सूख चुके जल स्‍त्रोतों को पुनजीर्वित करने के बजाय वहां इमारतें बनाई जा रही है। सरकार और नीति नियंता इससे अनजान नहीं है। मगर जब भी जल संकट होता है तब सिर्फ कुछ तात्‍कालिक उपायों की घोषणा कर अपने दायित्‍वों की इतिश्री कर लेते है और हर साल समस्‍या गंभीर होती जाती है।  
 
 
 
 
 
 

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