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बंसोड कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 प्रवेश प्रारंभ सीपीसीटी,पीजीडीसीए,डीसीए, की सम्‍पूर्ण तैयारी करवायी जाती है।

created Mar 26th, 05:28 by neetu bhannare


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सहकारिता में अनेकों लाभ हैं। इससे मनुष्‍य में आपस में मिल-जुलकर कार्य करने की भावना का उदय होता है। एक दूसरे के प्रति विश्‍वास उत्‍पन्‍न होता है। इस प्रकार मनुष्‍य का नैतिक उत्‍थान होता है। श्रम का स‍ब में बराबर विभाजन हो जाता है। जो लाभ होता हैं उसमें सभी को उचित हिस्‍सा मिल जाता है। यदि कुछ हानि होती है तो उसका भार किसी एक पर नहीं पड़ता बल्कि सभी में बराबर बंट जाता है। सहकारी समितियों से कम पैसों में आवश्‍यकता के समय समान मिल जाता है। भारत में कृषि के क्षेत्र में सहकारिता का विशेष लाभ है। किसानों के खेत पीढ़ी दर पीढ़ी बंटवारे के कारण छोटे-छोटे होते जा रहे है, यदि किसान आपस में संगठन बनाकर कार्य करे तो अच्‍छे बीज का और आधुनिक यंत्रों का प्रयोग करके पैदावार बढ़ा सकते है। छोटे और बीच की श्रेणी के कृषकों की आर्थिक दशा सहकारी खेती से ही सुधर सकती है। सफलता के साधनों में आत्‍मविश्‍वास का एक प्रमुख विशेष स्‍थान है। सफलता वास्‍तव में मिलती उसे ही है जिसकों कि अपने ऊपर विश्‍वास है जिसे अपने ऊपर विश्‍वास नहीं है वह जीवन के किसी क्षेत्र में सफलीभूत नहीं हो सकता। सफलता आत्‍मविश्‍वास का परिणाम है या यों कहिए की सफलता आत्‍मविश्‍वास की चेरी है। यदि हम महान पुरूषों की जीवनियों पर थोड़ा-सा दृष्टिपात करें तो पायेंगे कि प्रत्‍येक महापुरूषों में आत्‍मविश्‍वास था, वह अपने आत्‍म पर जीवन पर्यन्‍त दृढ़ विश्‍वास रहा तथा उस व्‍यक्ति के महान बनने में आत्‍मविश्‍वास का पूरा हाथ रहा है। वास्‍तव में यदि उनमें आत्‍मविश्‍वास की कमी होती है तो वे महान बन ही नहीं सकते थे, वे गन्‍तव्‍य स्‍थान पर पहुंच ही नहीं सकते थे तथा जो महान कार्य वे अपने जीवन में कर गए वे कर पाते। आत्‍मविश्‍वास की पुंजी को यदि अन्‍य पूजियों के मुकाबले में सर्वोपरि रखा जाए तब भी कोई अतिश्‍योक्ति होगी। भारत शान्तिप्रिय देश है। वह राष्‍ट्रों के बीच तमाम झगड़ों को शान्तिपूर्वक वार्ता द्वारा निबटाने की नीति पर सदा चलता रहा है और संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ में तथा अन्‍य अन्‍तर्राष्‍ट्रीय संगठनों तथा सम्‍मेलनों में पूर्णनिरस्‍त्रीकरण के लिये संघर्ष करता रहा है। किन्‍तु जब तक ऐसी शक्तियॉं विद्यमान है जो अन्‍य राष्‍ट्रों को दबाने के लिए शक्ति का उपयोग करना चाहती है, तब तक अपनी स्‍वतंत्रता और स्‍वाधीन जीवन की रक्षा के लिये भारत को अपने प्रतिरक्षा के उपाय भी करते रहना है। पड़ोसी और कल तक के मित्र चीन के विश्‍वासघाती आक्रमण से इसकी आवश्‍यकता और भी स्‍पष्‍ट हो गई है। क्‍या दूसरों के बल पर अपनी प्रतिरक्षा हो सकती है? कभी नहीं। जो व्‍यक्ति दूसरे के बल पर अपनी प्रतिरक्षा की बात सोचता है, वह अन्‍तत: अपने सबल मित्र का मित्र नहीं रह जाता, दास बन जाता है। यही बात राष्‍ट्रों के लिये सच है। अपनी प्रतिरक्षा के नाम पर जो राष्‍ट्र किसी शक्तिशाली राष्‍ट्र के फौजी गुट में शामिल हो गए हैं, वे सचमुच अपनी स्‍वाधीनता के हाथ धो बैठे हैं।  

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