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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Mar 26th, 04:38 by lucky shrivatri
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समृद्धि का आशय चरित्र की उच्चता, सदगुणों के संचयन एवं आत्म संतुष्टि से है। मनुष्य के अधिकांश दु:ख जैसे आत्महीनता, नैराश्य और परदोष दर्शन आदि उसके अज्ञान एवं सत्संग व स्वाध्याय के अभाव का परिणाम है। अत: जीवन में सत्संग और स्वाध्याय से उपार्जित प्रेरणा के सतत प्रवाह को बनाए रखें। मनुष्य जीवन को सार्थकता उज्ज्वन और उदात चरित्र से होती है। सामाजिक प्रतिष्ठा के भागीदार वे होते है जिनमे चारित्रिक बल की न्यूनता नहीं पाई जाती। जिस पर सभी लोग विश्वास करते हो, ऐसे ही लोगों का असर दूसरों पर पड़ता है। चरित्र साधना का मूलाधार मानसिक पवित्रता है। चरित्रवान बनने के लिए अपनी आत्मिक शक्ति को जगाने की आवश्यकता होती है। तप, संयम और धैर्य से आत्मा बलवान बनती है। अपने जीवन में कठिनाइयों ओर चुनौतियों को स्थान न मिले तो आत्म-शक्ति जागृत नहीं होती। जब तक कष्ट और कठिनाइयों से जूझने का भाव हृदय में नहीं आता, तब तक चरित्रवान बनने की कल्पना साकार रूप धारण नहीं कर सकती। सद विचारों और सत्कमों की एकरूपता को ही चरित्र कहते है। जिसके विचार देखने में भले प्रतीत हो किंतु आचरण सर्वथा भिन्न हो, स्वार्थपूर्ण हो, उन्हें चरित्रवान नहीं कहा जा सकता। जो अपनी इच्छाओं को नियन्त्रित रखते है और उन्हें सत्कर्मो का रूप देते है, उन्ही को चरित्रवान कहा जा सकता है।
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