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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Mar 22nd, 07:33 by lovelesh shrivatri
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वायु प्रदूषण का खतरा ऐसा है जो दिखता भी है और महसूस भी होता है। वैश्विक संस्थाएं समय-समय पर बढ़ते वायु प्रदूषण के आंकड़े देते हुए आगाह करती रही हैं लेकिन दुनिया भर के लिए चिंता का सबब बन चुकी इस समस्या के समाधान की दिशा में ठोस प्रयास होते दिखाई नहीं दे रहे । स्विट्जरलैण्ड के संगठन आइक्यूयर की ताजा रिपोर्ट खासतौर से भारत के लिए चिंता पैदा करने वाली है। चिंता इसलिए क्योंकि इस रिपोर्ट में देश की राजधानी दिल्ली को दुनिया के सबसे खराब गुणवत्ता वाले राजधानी शहर के रूप में बताया गया है। वहीं बिहार का बेगूसराय दुनिया का सबसे प्रदूषित शहरी क्षेत्र बन गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार आगाह करता रहा हैं कि वायु प्रदूषण का खतरनाक स्तर अस्थमा, कैंसर और फैफड़ों की गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। इससे चिंता यह भी है कि दुनियाभर में हर साल करीब सत्तर लाख वायु प्रदूषण की वजह से मौत का ग्राम बन जाते है। देखा जाए तो सांसों मे घुलते इस जहर के लिए कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं है। और न ही किसी एक को जवाबदेह ठहराया जा सकता है। जब सरकारें और समाज दोनों अपनी जिम्मेदारी से विमुख होने लग जाएं तो सेहत से जुड़ी सर्वाधिक समस्याएं वायु प्रदूषण के कारण ही होती है। ऐसे में सेहत की मद में सरकारों को कितना खर्च करना पड़ता है, इसका अनुमान लगाना ही मुुश्किल है। हमारे यहां तो सुप्रीम कोर्ट तक कई बार कह चुका है कि प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकारों को राजनीति से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। आइक्यूएयर के मुताबिक दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित 50 शहरों में से 42 भारत के है। यह तथ्य सचमुच डराने वाला है और प्रदूषण की रोकथाम के प्रयासों मेें होने वाली ढिलाई को भी इंगित करता है।
सबसे बड़ी जरूरत इस बात की है कि प्रदूषण की रोकथाम को सिर्फ सरकारों के भरोसे ही नहीं छोड़ा जाए। समाज के जागरूक व्यक्ति के रूप में सबको वे प्रयास करने चाहिए जिनकी वजह से प्रदूषण कम होता हो।
विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार आगाह करता रहा हैं कि वायु प्रदूषण का खतरनाक स्तर अस्थमा, कैंसर और फैफड़ों की गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। इससे चिंता यह भी है कि दुनियाभर में हर साल करीब सत्तर लाख वायु प्रदूषण की वजह से मौत का ग्राम बन जाते है। देखा जाए तो सांसों मे घुलते इस जहर के लिए कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं है। और न ही किसी एक को जवाबदेह ठहराया जा सकता है। जब सरकारें और समाज दोनों अपनी जिम्मेदारी से विमुख होने लग जाएं तो सेहत से जुड़ी सर्वाधिक समस्याएं वायु प्रदूषण के कारण ही होती है। ऐसे में सेहत की मद में सरकारों को कितना खर्च करना पड़ता है, इसका अनुमान लगाना ही मुुश्किल है। हमारे यहां तो सुप्रीम कोर्ट तक कई बार कह चुका है कि प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकारों को राजनीति से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। आइक्यूएयर के मुताबिक दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित 50 शहरों में से 42 भारत के है। यह तथ्य सचमुच डराने वाला है और प्रदूषण की रोकथाम के प्रयासों मेें होने वाली ढिलाई को भी इंगित करता है।
सबसे बड़ी जरूरत इस बात की है कि प्रदूषण की रोकथाम को सिर्फ सरकारों के भरोसे ही नहीं छोड़ा जाए। समाज के जागरूक व्यक्ति के रूप में सबको वे प्रयास करने चाहिए जिनकी वजह से प्रदूषण कम होता हो।
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