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JR CPCT INSTITUTE, TIKAMGARH (M.P.) || ॐ || मार्गदर्शन हमारा- सफलता आपकी || ॐ || नारी शक्ति का वंदन (Editorial Dictation) MOB. 7000315619

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नारी शक्ति का वंदन संसद के नए भवन में पहले ही दिन नारी शक्ति वंदन अधिनियम के रूप में महिला आरक्षण विधेयक प्रस्तुत होने से यह स्पष्ट हो गया कि प्रधानमंत्री किन कारणों से विशेष सत्र को ऐतिहासिक बता रहे थे। लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के लिए कानून बनाने की पहल पिछले 27 वर्षों से हो रही थी, लेकिन किसी किसी कारण वह आगे नहीं बढ़ पा रही थी इस विधेयक पर आम सहमति बन पाने का कारण केवल यही नहीं था कि लगभग सभी दलों के पुरुष सांसदों को अपनी राजनीतिक जमीन छिनने का भय सता रहा था, बल्कि यह भी था कि अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षण के अंदर आरक्षण की मांग की जा रही थी। इस पर भी आम राय नहीं बन पा रहीं थी अब जो विधेयक पेश किया गया है, उसमें अनुसूचित जाति एवं जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। इससे आम सहमति बनाने में आसानी होगी, लेकिन यह प्रश्न उठ रहा है कि अन्य पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रविधान क्यों नहीं किया गया ? चूंकि यह प्रश्न उठाने वाले दल भी महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन कर रहे हैं, इसलिए इसकी उम्मीद बढ़ गई है कि यह अब कानून का रूप ले लेगा। उम्मीद इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं का 33 प्रतिशत आरक्षण जनगणना और परिसीमन के बाद प्रभावी होगा। इसका अर्थ है कि अगले आम चुनाव के बाद ही महिलाएं इस आरक्षण का लाभ उठा पाएंगी। चूंकि परिसीमन के चलते लोकसभा और विधानसभाओं की सीटें बढ़ जाएंगी, इसलिए मौजूदा पुरुष जनप्रतिनिधियों को यह चिंता नहीं रहेगी कि उनकी राजनीति का क्या होगा ? महिला आरक्षण की आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि भारत एक पितृसत्तात्मक समाज है और तमाम प्रगति के बाद भी महिलाओं को वह स्थान नहीं मिल सका है, जो उन्हें मिलना चाहिए। यह अच्छा है कि प्रस्तावित विधेयक में 15 वर्ष बाद महिला आरक्षण की समीक्षा का प्रविधान है। यह सर्वथा उचित है, क्योंकि इसकी तह में जाना ही चाहिए कि नारी उत्थान के लिए जो व्यवस्था की जा रही है, उससे वांछित लाभ अर्जित हो पाया या नहीं ? हर किस्म के आरक्षण की समीक्षा इसलिए होनी चाहिए, ताकि यह जाना जा सके कि पात्र लोगों को उसका सही लाभ मिल रहा है या नहीं? यह जानना इसलिए और आवश्यक है, क्योंकि यह देखने को मिल रहा है कि पंचायतों में आरक्षण के चलते महिलाओं की भागीदारी तो बढ़ी है, लेकिन कई जगह उनके दायित्वों का निर्वहन उनके पति कर रहे हैं। अब जब लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के समुचित प्रतिनिधित्व की दिशा में आगे बढ़ा जा रहा है, तब यह भी देखा जाना चाहिए कि राजनीति से इतर क्षेत्रों में भी महिलाओं की भागीदारी कैसे बढ़े।  
 

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