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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Mar 12th, 08:13 by sandhya shrivatri
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किसी गांव में चार दोस्त रहते थे। चारों में बहुत गहरी दोस्ती थी। वे हमेशा साथ-साथ खाते और साथ-साथ रहते। जाति से चारों दोस्त ब्राह्मण थे। उनमें से तीन बहुत पढे-लिखे थे मगर चौथा घर की समस्याओं के वजह से पढ नहीं पाया था। वैसे वह बुद्धिमान बहुत था। अनपढ होने के कारण उसके तीनों दोस्त उसका मजाक उढाते थे, लेकिन वह दोस्ती के कारण उसकी बात का बुरा नहीं मानता था। एक दिन चारों मित्र बातें कर रहे थे। बात में बात निकली कि चारों में सबसे बुद्धिमान कौन है। इस बात को लेकर बात बढ़ती चली गयी। आखिर में चारों ने यह फैंसला किया कि दुसरे राज्य में जाकर वहां के राजा को खुश करेंगे और काम में जो सबसे ज्यादा धन लाएगा वहीं सबसे बुद्धिमान होगा।
ऐसा निर्श्चय करके वे चारों दूसरे शहर की ओर चल पड़े। रास्ते में वे तीन दोस्त चौथे पर कोई न कोई व्यंग करते हुए चल रहे थे। और वह चौथा बेचारा मुस्कुराकर उनकी बात टाल रहा था। दो दिन चलने के बाद वे एक जंगल में पहुंचे उस समय थोडा दिन छिपने लगा था, इसी कारण उन्होंने वही जंगल में रूकने का फैसला किया मगर चौथा दोस्त इस बात से सहमत न था। तीनो मित्रों ने उस तरफ देखा जाह जानवर की हड्डिया पडी थी। हड्डियों पर एक नजर डालने के बाद एक ने सुझाव दिया- क्यो न हम राजा के पास जाने से पहले जांच कर ले कि हममें से कौन बुद्धिमान और विद्वान है। दूसरे ने कहा ठीक है, मैं इन हड्डियों को जोडकर ढांचा तैयार कर देता हूं। यह कहकर झट से उसने अपनी विद्या से हड्डियों को जोड दिया। तब पहले ने उसे ढांचे पर मांस, चमडी, नसें, और खुन पैदा किया और पीछे हट गया क्योंकि ढांचा शेर में बदल गया था। उसी बिच चौथा जो अनपढ था, खामोशी से उनकी हरकते और बातचीत सुनता रहा। उसने उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया। इधर पहले वाले के पीछे हटते ही तीसरा आगे आया और बोला- तुम दोनों ने तो अपनी कला और विद्या का प्रदर्शन कर दिया अब मेरी बारी है। इसी में जान फंकना सबसे बड़ी विद्या है। जो मेरे पास है, अब देखों मैं कैसे इस शेर में जान डालता हूं। यह कहकर वह शेर में जान डालने के लिए आगे बडा तभी चौथा व्यकित बोल उठा- अरे ठहरों भईया ठहरों! क्यों क्या हुआ? तीसरे ने झल्लाकर पूछा। लगता हैं इस डरपोक को डर लग रहा है। दसूरे ने उपहास किया। पहला बोला ओ मूर्ख। तु चुप रह, दोबारा मत बोलना तु अनपढ है। चुपचाप खड़ा रह और हमारी विद्या का कमाल देख। मगर भईया यह शेर जीवित हो गया तो। हम सबको खा जायेगा। चौथे ने अपनी आशंका प्रकट की। चुपकर मूर्ख। तू तो ज्ञान को ही बेकार कर देगा। मैं तो इसे जीवित करके ही दम लूगा। तीसरा घंमड से बोला तब चौथा ने सोचा कि यह लोग शेर को जीवित करके ही दम लेंगे मानेंगे नहीं। शेर जीवित होते ही हम सबको मार डालेगा। यह सोचकर वह उन तीनों से बोला- ठीक हैं भईया जैसी तुम लोगों की इच्छा।
ऐसा निर्श्चय करके वे चारों दूसरे शहर की ओर चल पड़े। रास्ते में वे तीन दोस्त चौथे पर कोई न कोई व्यंग करते हुए चल रहे थे। और वह चौथा बेचारा मुस्कुराकर उनकी बात टाल रहा था। दो दिन चलने के बाद वे एक जंगल में पहुंचे उस समय थोडा दिन छिपने लगा था, इसी कारण उन्होंने वही जंगल में रूकने का फैसला किया मगर चौथा दोस्त इस बात से सहमत न था। तीनो मित्रों ने उस तरफ देखा जाह जानवर की हड्डिया पडी थी। हड्डियों पर एक नजर डालने के बाद एक ने सुझाव दिया- क्यो न हम राजा के पास जाने से पहले जांच कर ले कि हममें से कौन बुद्धिमान और विद्वान है। दूसरे ने कहा ठीक है, मैं इन हड्डियों को जोडकर ढांचा तैयार कर देता हूं। यह कहकर झट से उसने अपनी विद्या से हड्डियों को जोड दिया। तब पहले ने उसे ढांचे पर मांस, चमडी, नसें, और खुन पैदा किया और पीछे हट गया क्योंकि ढांचा शेर में बदल गया था। उसी बिच चौथा जो अनपढ था, खामोशी से उनकी हरकते और बातचीत सुनता रहा। उसने उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया। इधर पहले वाले के पीछे हटते ही तीसरा आगे आया और बोला- तुम दोनों ने तो अपनी कला और विद्या का प्रदर्शन कर दिया अब मेरी बारी है। इसी में जान फंकना सबसे बड़ी विद्या है। जो मेरे पास है, अब देखों मैं कैसे इस शेर में जान डालता हूं। यह कहकर वह शेर में जान डालने के लिए आगे बडा तभी चौथा व्यकित बोल उठा- अरे ठहरों भईया ठहरों! क्यों क्या हुआ? तीसरे ने झल्लाकर पूछा। लगता हैं इस डरपोक को डर लग रहा है। दसूरे ने उपहास किया। पहला बोला ओ मूर्ख। तु चुप रह, दोबारा मत बोलना तु अनपढ है। चुपचाप खड़ा रह और हमारी विद्या का कमाल देख। मगर भईया यह शेर जीवित हो गया तो। हम सबको खा जायेगा। चौथे ने अपनी आशंका प्रकट की। चुपकर मूर्ख। तू तो ज्ञान को ही बेकार कर देगा। मैं तो इसे जीवित करके ही दम लूगा। तीसरा घंमड से बोला तब चौथा ने सोचा कि यह लोग शेर को जीवित करके ही दम लेंगे मानेंगे नहीं। शेर जीवित होते ही हम सबको मार डालेगा। यह सोचकर वह उन तीनों से बोला- ठीक हैं भईया जैसी तुम लोगों की इच्छा।
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