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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Mar 9th, 09:46 by lucky shrivatri


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महंगाई की मार वैसे तो चहुंओर पड़ती है लेकिन यही मार जब अपने घर की चाह रखने वालों पर पड़ती है तो उनका यह सपना टूटता नजर आता है। हर कोई चाहता है कि जीवन में कम से कम एक बार वह अपने लिए घर जरूर बनवाए। इसके लिए जीवन भर की गाढ़ी कमाई के साथ-साथ कर्ज के बोझ को झेलना भी मंजूर होता है। महानगरों दूसरे बड़े शहरों में रोजी-रोटी की तलाश में जाने वालों के लिए तो घर बनाना और भी मुश्किल होता जा रहा है। इस दिशा में यह ताजा रिपोर्ट ज्‍यादा चिंतित करने वाली है जिसमें कहा गया हैं कि पिछले दो साल में देश के शीर्ष प्रॉपटी बाजार में घरों की बढ़ती मांग के बीच इनके दाम भी बीस फीसदी तक बढ़ गए है। देश की राजधानी दिल्‍ली में मकान महंगे होने की रफ्तार सबसे ज्‍यादा है।  
यह तस्‍वीर ऐसे दौर की है, जब सरकारें भी लोगों को घर उपलब्‍ध कराने की योजनाएं जोर शोर से लागू करती है। लेकिन ये योजनाएं निम्‍न आय वर्ग तक की सीमित रहती है। निम्‍न मध्‍यम वर्ग मध्‍यम वर्ग भी कम परेशान नहीं है। इसक वजह यह है कि एक तो नौकरी अथवा व्‍यापार के सिलसिले में उसकी इन महानगरों दूसरे शहरों का रूख करने की मजबूरी होती है। वहीं आय के साधन अपेक्षाकृत सीमित ही होते है। वैसे भी बड़े शहरों में बढ़ती आबादी के अनुपात में रहवास की समस्‍या का समाधान करना काफी मुश्किल होताा है। अधिकांश महानगर कोसों दूर तक पसर गए है। क्रेडाई कोलियर्स लियासेस फोरस हाउसिंग प्राइस ट्रैकर बताती हैं कि दिल्‍ली एनसीआर, बेंगलूर और कोलकाता में तो दो साल में घरों की कीमत तीस फीसदी तक बढ़ गई है। बड़ी वजह यह भी है कि जमीनों के दाम बढ़ने के साथ-साथ निर्माण सामग्री के दाम भी लगातार बढ़ ही रहे है। महंगी निर्माण सामग्री के कारण बिल्‍डर्स के भी कई प्रोजेक्‍ट समय पर पूरे नहीं हो पा रहे। सरकारों ने तो पहले से ही सस्‍ते आवास उपलब्‍ध कराने की योजनाओं से हाथ खींच रखा है। जहां कहीं बड़े शहरों में सरकारों की आवासीय योजनाएं बनी भी हैं, उनमें भी अधिकांश लोगों के कार्यस्‍थल से काफी दूर है। रही-सही कसर आवागमन के साधनों की कमी से पूरी हो जाती है।   

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