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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
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देश में आयुर्वेद चिकित्सा के जरिए सदियों से उपचार होता आ रहा है। जड़ी-बुटियों के सेवन मात्र से कई गंभीर बीमारियां भी ठीक होती आई है। आज भी दादी-नानी के नुस्खों को घरों में खूब आजमाया जाता है। आयुष चिकित्सा के प्रति लोगों का रूझान फिर बढ़ता दिख रहा है। इसी बढ़ते रूझान के बीच सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डीवाइ चन्द्रचूड़ का आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को लेकर साझा किया गया अनुभव, इस पद्धति से उपचार लेने वालों का आत्मविश्वास और बढ़ाने वाला है।
प्रधान न्यायाधीश ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में अपना अनुभव साझा कर बता दिया कि आयुर्वेद पद्धति और योग से जुड़ी भारतीय जीवनशैली को अपनाया जाए, तो बीमारियां कोसों दूर रहती है। सुप्रीम कोर्ट में आयुष वेलनेस सेंटर का उदघाटन करते हुए चन्द्रचूड़ ने कहा कि वे तीन बार कोविड की चपेट में आए। पीएम नरेंद्र मोदी की सलाह पर आयुर्वेदिक उपचार से इस रोग से उबरने में मदद मिली। चन्द्रचूड़ की तरह देश भर में कई लोगों का भी यही मानना हैं कि कई बीमारियों में आयुर्वेदिक उपचार अधिक कारगर होता है। लेकिन यह भी सच है कि एलोपैथी के मुकाबले हमारे देश में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को वह सम्मान नहीं मिल सका जिसकी वह कहदार है। हालांकि इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले सालो में एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली में भी कई क्रांतिकारी बदलाव आए है। ये बदलाव मरीजों को स्वस्थ करने में कारगर साबित हुए है। जीवन रक्षा के लिए कई बार एलोपैथी पद्धति से चिकित्सा जरूरी हो जाती है। इसका आशय यह नहीं हैं कि हम आयुष प्रणाली का असर स्वीकार नहीं करें। कई दुर्लभ बीमारियों में भी आयुष कारगर रहा है। ऐसे उदाहरण सामने आते रहते हैं, जब जीने की आस छोड़ चुके मरीजों को आयुर्वेद के जरिए ही जीवनदान मिला। आयुर्वेद के प्रति लोगों के बढ़ते रूझान के बीच चिंताजनक तस्वीर यह है कि आज भी राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में आयुष चिकित्सकों की उपलब्धता अपेक्षाकृत कम है। आयुर्वेद कॉलेज और इस पद्धति के अस्पताल संसाधनों के मामले में भी बहुत पीछे है। यह भी सच है कि आयुष प्रशिक्षण के क्षेत्र में कई राज्यों में बेहतर काम भी हुआ है लेकिन अभी काफी कुछ करना बाकी है।
प्रधान न्यायाधीश ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में अपना अनुभव साझा कर बता दिया कि आयुर्वेद पद्धति और योग से जुड़ी भारतीय जीवनशैली को अपनाया जाए, तो बीमारियां कोसों दूर रहती है। सुप्रीम कोर्ट में आयुष वेलनेस सेंटर का उदघाटन करते हुए चन्द्रचूड़ ने कहा कि वे तीन बार कोविड की चपेट में आए। पीएम नरेंद्र मोदी की सलाह पर आयुर्वेदिक उपचार से इस रोग से उबरने में मदद मिली। चन्द्रचूड़ की तरह देश भर में कई लोगों का भी यही मानना हैं कि कई बीमारियों में आयुर्वेदिक उपचार अधिक कारगर होता है। लेकिन यह भी सच है कि एलोपैथी के मुकाबले हमारे देश में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को वह सम्मान नहीं मिल सका जिसकी वह कहदार है। हालांकि इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले सालो में एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली में भी कई क्रांतिकारी बदलाव आए है। ये बदलाव मरीजों को स्वस्थ करने में कारगर साबित हुए है। जीवन रक्षा के लिए कई बार एलोपैथी पद्धति से चिकित्सा जरूरी हो जाती है। इसका आशय यह नहीं हैं कि हम आयुष प्रणाली का असर स्वीकार नहीं करें। कई दुर्लभ बीमारियों में भी आयुष कारगर रहा है। ऐसे उदाहरण सामने आते रहते हैं, जब जीने की आस छोड़ चुके मरीजों को आयुर्वेद के जरिए ही जीवनदान मिला। आयुर्वेद के प्रति लोगों के बढ़ते रूझान के बीच चिंताजनक तस्वीर यह है कि आज भी राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में आयुष चिकित्सकों की उपलब्धता अपेक्षाकृत कम है। आयुर्वेद कॉलेज और इस पद्धति के अस्पताल संसाधनों के मामले में भी बहुत पीछे है। यह भी सच है कि आयुष प्रशिक्षण के क्षेत्र में कई राज्यों में बेहतर काम भी हुआ है लेकिन अभी काफी कुछ करना बाकी है।
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