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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Feb 13th 2024, 06:56 by lovelesh shrivatri
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आखिर भारत सरकार के कूटनीतिक प्रयास रंग लाए। पछिले डेढ़ साल से कतर की जेल में बंद आठ पूर्व भारतीय नौसैनिकों की रिहाई समूचे देश के लिए संतोष की बात है। यह मामला सिर्फ इन पूर्व नौसैनिकों की रिहाई तक ही सीमित नहीं है। अगस्त 2022 में इन आठ जनों की गिरफ्तारी एक राजनीतिक मुद्दा भी बन चुका था। कतर की अदालत ने पहले इन्हें फांसी की सजा सुनाई और फिर इसे उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। इनकी रिहाई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा से पहले होना महत्वपूर्ण है। इनकी गिरफ्तारी से न केवल भारत कतर संबंध बिगड रहे थे बल्कि विदेश में और खास तौर पर खाड़ी देशों में जाने वाले भारतीयों के लिए भी यह चिंता का विषय बना हुआ था।
भारत सरकार इन जवानों को कानूनी सहायता भी उपलब्ध करा रही थी। वही इनके परिवारों से भी सतत संपर्क रख आश्वस्त कर रही थी कि जल्द ही इनकी रिहाई करा ली जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी खुद इस मामले में व्यक्तिगत रूचि ले रहे थे। यह पहला मौका नहीं है जब भारत सरकार ने अपने नागरिकों की सुरक्षित रिहाई के प्रयास किए हो। कोरोनाकाल में विदेशों में फंसे भारतीयों को स्वदेश लाने में भी सरकार ने तत्परता दिखाई थी। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान फंसे विद्यार्थियों समेत दूसरे भारतीयों को भी भारत लाने के विशेष प्रयास किए गए थे। यह मानने में संकोच नहीं होना चाहिए कि एस जयशंकर के विदेश मंत्री रहने के दौरान हमारी नीति में उल्लेखनीय सुधार आया है। इससे पहले वे विदेश सचिव व अनेक देशों में राजदूत रह चुके है। इस दौरान बने उनके संबंध कई नाजुक मौकों पर काम आते रहे है। वे कूटनीतिक संबंधों की बारीकियों को नजदीक से समझते है। कतर की जेल में बंद आठ भारतीय रिहा तो हो गए लेकिन ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति न हो पाए, इसका भी ध्यान रखना होगा। कतर की सरकार ने भारतीय पूर्व नौसैनिकों की गिरफ्तारी के कारणों का भी कभी सार्वजनिक रूप से खुलासा भी नहीं किया। यह प्रकरण सिर्फ भारत कतर संबंधों तक ही सीमित नहीं है। खाड़ी के दूसरे देशों में भी रोजगार के लिए जाने वाले भारतीय श्रमिकों के उत्पीड़न के किस्से भी गाहे-बगाहे सामने आते रहे है।
भारत सरकार इन जवानों को कानूनी सहायता भी उपलब्ध करा रही थी। वही इनके परिवारों से भी सतत संपर्क रख आश्वस्त कर रही थी कि जल्द ही इनकी रिहाई करा ली जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी खुद इस मामले में व्यक्तिगत रूचि ले रहे थे। यह पहला मौका नहीं है जब भारत सरकार ने अपने नागरिकों की सुरक्षित रिहाई के प्रयास किए हो। कोरोनाकाल में विदेशों में फंसे भारतीयों को स्वदेश लाने में भी सरकार ने तत्परता दिखाई थी। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान फंसे विद्यार्थियों समेत दूसरे भारतीयों को भी भारत लाने के विशेष प्रयास किए गए थे। यह मानने में संकोच नहीं होना चाहिए कि एस जयशंकर के विदेश मंत्री रहने के दौरान हमारी नीति में उल्लेखनीय सुधार आया है। इससे पहले वे विदेश सचिव व अनेक देशों में राजदूत रह चुके है। इस दौरान बने उनके संबंध कई नाजुक मौकों पर काम आते रहे है। वे कूटनीतिक संबंधों की बारीकियों को नजदीक से समझते है। कतर की जेल में बंद आठ भारतीय रिहा तो हो गए लेकिन ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति न हो पाए, इसका भी ध्यान रखना होगा। कतर की सरकार ने भारतीय पूर्व नौसैनिकों की गिरफ्तारी के कारणों का भी कभी सार्वजनिक रूप से खुलासा भी नहीं किया। यह प्रकरण सिर्फ भारत कतर संबंधों तक ही सीमित नहीं है। खाड़ी के दूसरे देशों में भी रोजगार के लिए जाने वाले भारतीय श्रमिकों के उत्पीड़न के किस्से भी गाहे-बगाहे सामने आते रहे है।
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