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created Feb 1st 2023, 03:18 by Successwithyou


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प्रकरण में जो साक्ष्‍य आई है उसके अनुसार अभियुक्‍त पर भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 302 अभियोजन युक्तियुक्‍त संदेह से परे प्रमाणित करने में असफल रहा है कि अभियुक्‍त ने मृतक को हाथ मुक्‍कों एवं लकड़ी से मारपीट की जिससे की मृतक मोहन की मृत्‍यु कारित हो जिसके परिणामस्‍वरूप मृतक मोहन की मृत्‍यु कारित हुई हो, इसलिए अभियुक्‍त सुधीर को भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 302 या धारा 304 भाई दो के अंतर्गत अपराध प्रमाणित नहीं पाया जाता है। अत: अभियुक्‍त सुरेश को संदेह का लाभ देते हुए भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 302 के आरोप से दोषमुक्‍त किया जाता है। प्रकरण में आई सम्‍पूर्ण साक्ष्‍य, साक्षियों, परिस्थितियों तथा माननीय न्‍यायदृष्‍टांतों के परिप्रेक्ष्‍य में अभियोजन युक्तियुक्‍त संदेह से परे भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 302 प्रमाणित नहीं कर सका है, किंतु भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 304 भाग दो प्रमाणित करने में सफल रहा है कि अभियुक्‍त सुरेश द्वारा मृतक मोहन के सिर पर मृत्‍यु या ऐसी शारीरिक क्षति जिससे मृत्‍यु कारित होना संभाव्‍य है कारित करने के आशय के बिना, लकड़ी से वार किया गया, जिसके परिणामस्‍वरूप चिकित्‍सा के दौरान मृतक मोहन की मृत्‍यु कारित हुई। अत- यह न्‍यायालय अभियुक्‍त सुरेश को भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 304 भाग दो में दोषी पाता है। अभियुक्‍त सुरेश हत्‍या के अपराध से संबंधित गंभीर आरोप में दोषी पाया गया है। ऐसे अपराध की प्रकृति एवं गंभीर स्‍वरूप को देखते हुए धारा 3 एवं 4 आपराधिक परीवीक्षा अधिनियम एवं धारा 360 दण्‍ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों का लाभ दिये जाने योग्‍य नहीं है, तथापित दण्‍डादेश के प्रश्‍न पर अभियुक्‍त और उसके योग्‍य अभिभाषक को सुने जाने के उपरांत दण्‍डादेश पारित किया जावेगा। दण्‍ड के प्रश्‍न पर अभियुक्‍त सुरेश को सुनने के लिए प्रकरण को स्‍थगित किया जाता है। अभियुक्‍त सुरेश के योग्‍य अभिभाषक को दण्‍ड के प्रश्‍न पर सुना गया। योग्‍य जिला अभियोजक ने जहां न्‍यायालय के विवेक पर छोड़ दिया है, वहीं अभियुक्‍त के प्रथम अपराध को ध्‍यान में रखते हुए न्‍यूनतम दण्‍डादेश का निवेदन बचाव पक्ष के योग्‍य अभिभाषक ने किया है। यद्यपि इस प्रक्रम पर बचावपक्ष की की ओर से किसी प्रकार की कोई साक्ष्‍य अपने बचाव में प्रस्‍तुत नहीं करना व्‍यक्‍त किया गया है।             

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