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बंसोड टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0

created Jan 20th 2023, 01:50 by sachin bansod


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हमने लेखापरीक्षा आपत्ति के जवाब में मूल्‍यांकन अधिकारी के उत्‍तर की संपूर्ण सामग्री को पुन: प्रस्‍तुत नहीं किया है, क्‍योंकि जो ऊपर पुन: प्रस्‍तुत किया गया है वह पर्याप्‍त है। निर्धारण अधिकारी के उपरोक्‍त उत्‍तर से यह स्‍पष्‍ट है कि मूल मूल्‍यांकन के समय इस मुद्दे पर विशेष रूप से विचार किया गया था और इसकी जांच की गई थी। यह भी ध्‍यान दिया जा सकता है कि पत्र दिनांक 28.01.2006 को मूल्‍यांकन आदेश में संदर्भित किया गया है, हालांकि किसी अन्‍य मुद्दे के संबंध में और प्रश्‍नगत मुद्दे के संबंध में नहीं। राय बदलने के सवाल पर कानून अच्‍छी तरह से तय है। इनकम टैक्‍स कमिश्‍नर बनाम केल्विनेटर ऑफ इंडिया लिमिटेड (2002) 256 आईटीआर 1 के मामले में इस कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट (2010) 320 आईटीआर 561 (सुप्रीम कोर्ट) ने बरकरार रखा है। उच्‍चतम न्‍यायालय ने धारा 147/148 के तहत कार्यवाही शुरू होने पर दायरे और न्‍यायिक पूर्व-शर्तों को स्‍पष्ट रूप से स्‍पष्‍ट और स्‍पष्‍ट किया है, जिन्‍हें संतुष्‍ट किया जाना चाहिए। आयोजित किया गया है- अधिनियम की धारा 147 में किए गए उपरोक्‍त उद्धृत परिवर्तनों के माध्‍यम से जाने पर, हम पाते हैं कि प्रत्‍यक्ष कर कानून (संशोधन) अधिनियम, 1987 से पहले, उपरोक्‍त दो शर्तों के तहत फिर से खोलना किया जा सकता था और केवल उक्‍त शर्तों को पूरा किया जा सकता था। निर्धारण अधिकारी को पिछला मूल्‍यांकन करने के लिए क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया, लेकिन अधिनियम की धारा 147 (1 अप्रैल, 1989 से प्रभावी) में, उन्‍हें जाने दिया गया और केवल एक शर्त रह गई है, अर्थात, जहां मूल्‍यांकनकर्ता अधिकारी के पास यह मानने का कारण है कि आय निर्धारण से बच गई है, मूल्‍यांकन को फिर से खोलने के लिए क्षेत्राधिकार प्रदान करता है। इसलिए, 1 अप्रैल, 1989 के बाद, फिर से खोलने की शक्ति कहीं अधिक व्‍यापक है। हालॉंकि, किसी को विश्‍वास करने का कारण शब्‍दों की एक योजनाबद्ध व्‍याख्‍या करने की आवश्‍यकता है, जिसके विफल होने पर, हमें डर है, धारा 147 मूल्‍यांकन अधिकारी को मात्र परिवर्तन के आधार पर मूल्‍यांकन को फिर से खोलने के लिए मनमाना अधिकार देगी, जो नहीं हो सकता फिर से खोलने के लिए प्रति कारण बनें। हमें समीक्षा करने की शक्ति और पुर्नमूल्‍यांकन करने की शक्ति के बीच वैचारिक अंतर को भी ध्‍यान में रखना चाहिए। मूल्‍यांकन अधिकारी के पास समीक्षा करने की कोई शक्ति नहीं है; उसके पास पुनर्मूल्‍यांकन करने की शक्ति है।

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