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High Court ki Taiyari
created Jan 19th 2023, 19:20 by 1998Raunak
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दहेज कोई आज का कल की सामाजिक बुराई नहीं यह प्राचीन काल से चली आ रही है और ऋषि मुनि भी इससे अछूते नहीं रहे थे। अभिज्ञान शकुंतलम् में ऋषि भी अपने सामर्थ्य के अनुसार शकुंतला को कुछ अर्पित करते हैं, ऐसा वर्णन है जबकि शकुंतला की शादी राजा से हो रही थी यानी गरीब हो या अमीर दूल्हा, किसी को दहेज लेने से कोई परहेज नहीं था। मगर जो अर्पण खुशी-खुशी किया जाता था, वह धीरे-धीरे एक आवश्यक बुराई बनता चला गया आधुनिक काल में यह बहुत भयंकर रूप ले चुका है मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास हों या आधुनिक कथाएं, सबमें दहेज का कोई न कोई प्रसंग आ ही जाता है। नए-नए धनाढ्य वर्ग ने इस बीमारी को और फैलाने तथा महामारी बनाने में मदद की है, जो विवाह समारोह को इतना खर्चीला बनाने में लगे हैं कि आम आदमी वैसा विवाह समारोह करने की सोचते ही कांप जाता है। आपको याद है हरियाणा के गुरुग्राम में एक राजनेता की बेटी की शादी पर भव्य पंडाल लगाकर शानदार भोज की बड़ी चर्चा रही थी इस शादी की। राजनेताओं के बेटे-बेटियों की शादियां बहुत भव्य होती हैं और इनके तो निमंत्रण-पत्र के साथ गिफ्ट भी भेजे जाते हैं। वैसे भी शगुन और शादी के समय भारी दहेज के प्रदर्शन रिवाज बहुत पुराना है। एक ऐसा समाज भी है हरियाणा में जहां शादी के वक्त सारी चीजों की सूची सबके बीच पढ़ी जाती है, ऊंचे स्वर में और सबसे हस्ताक्षर लिए जाते हैं ताकि अगर आने वाले समय में कोई विवाद हो तो वह सूची दिखाकर सामान वापसी की मांग आसान हो। मोटरसाइकिल, कारें तक ऐसे प्रदर्शित की जाती हैं जैसे शोरूम वाले माडलों से करवाते हैं। कभी आपने सुना था प्री-वेडिंग शूट अब यह बाकायदा प्रचलन में है और यह पेशे का रूप ले चुका है। याद आता है कि कभी विवाह समारोह के लिए पूरे गली-मोहल्ले के लोग जुटते थे और केले के तने और आम के पत्तों से मंडप सजाए जाते थे। रंगीन कागजों से बनाई झंडियों से पंडाल सजाए जाते थे जो मोहल्ले के लोग ही बनाते थे और पहले बाराती खाना खाते थे और बाद में घराती।
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