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High Court ki Taiyari
created Jan 19th 2023, 19:12 by 1998Raunak
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अधीनस्थ न्यायालय में प्रतिवादी क्रमांक 1 वादोत्तर प्रस्तुत कर स्वीकृत तथ्यों को छोड़कर वाद पत्र में उल्लेखित अन्य अभिवचनों को अस्वीकृत करते हुए विशेष कथन में यह अभिकथित किया है कि विवादित भवन प्रतिवादी क्रमांक 2 ने स्व अर्जित धन से पंजीकृत विक्रयपत्र के माध्यम से क्रय किया है। नगर पालिका निगम के अभिलेख में उसका नाम दर्ज है। वही संपत्ति कर अदा कर रही है। मनोहर राव को रूपयों की आवश्यकता हाेने से उसने विवादित भवन का विक्रयपत्र निष्पादित किया है। उक्त विक्रयपत्र में जमनाबाई की सहमति रही है। श्रीमती जमनाबाई ने स्वयं के जीवनकाल में उक्त तथ्यों के संबंध में कोई चुनौती नहीं दी है। श्रीमति जमनाबाई द्वारा प्रतिवादी के हित में गवाहों के समक्ष नोटराइज्ड़ सहमति पत्र निष्पादित किया था। विवादित मकान में श्रीमति जमनाबाई का कोई स्वतत्व एवं अधिकार नहीं था। वसीयतनामा प्रारंभ से ही अवैध एवं शून्य है। वादी की पत्नी मंजू स्वयं विभाग में कार्यरत थी। मंजू ने वादी का त्याग कर अन्यत्र विवाह कर लिया तथा वादी को घर से निकाल दिया, इस कारण वादी को मदद करने के आशय से प्रतिवादी क्रमांक 1 व 2 द्वारा वादी को परिवार के सदस्य के रूप में विवादित मकान के प्रथम मंजिल के एक कमरे में निवास करने हेतु अनुमति प्रदान की थी। वादी द्वारा अवैधानिक तरीके से श्यामा नामक महिला को स्वयं के साथ रख लिया और असत्य आधारों पर विवादित मकान को हडपने का प्रयास किया। विक्रय पत्र पर मनोहर राव द्वारा भी कोई आपत्ति नहीं की गई है। वाद अवधि बाह्य है। मूल्य अनुसार न्यायालय शुल्क अदा न कर उचित मूल्यांकन नहीं किया गया है। विशेष आपत्ति यह उठाई है कि विवादित मकान में प्रतिवादी उषा के साथ उसके पति शर्मानन्द तथा तीन संताने निवास करती है। प्रतिवादी श्रीमति जमनाबाई भी संयुक्त रूप से उनके साथ निवास करती थी। वादी द्वारा अन्य स्त्री को घर में रखने से परिवार की मर्यादा एवं प्रतिष्ठा प्रभावित हो रही है। प्रतिवादी के बच्चों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
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