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CPCT 1 मार्च 2020 {Shift 1} HINDI TYPING TEST

created Jan 19th 2023, 04:22 by Ishu12683


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यह समझना गलत है कि मांस मे प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है,  इसलिए वह पोष्टिक आहाार है। मांस केवल 7 प्रतिशत प्रोटीन होता है जबकि उसकी मात्रा पनीर में 25 प्रतिशत और सोयबीन में 40 प्रतिशत तक पाई जाती है। लोहे का अंस मांस मे होता तो है पर वह दूध एवं वनस्पलतियों में मिलने वाले लोहे की अपेक्षा मात्रा में भी कम है और स्‍तर भी घटिया है। शरीर को प्रतिदिन जितने लोहे की आवश्यलकता पडती है, उसकी पूर्ति के लिए डेढ पौड मांस अथवा साढे सात पौड मछली खानी पडेगी। लौह वस्तु त: मां में नही रक्त  में होता है। मांस में जितना अंश रक्ती का रहा होगा, उसी आधार पर लोहा पाया जाएगा, फिर प्राणियों के रक्ते से मिला लोह दुष्पाशच्य  होता है और असानी से मानव रक्तो में नही घुलता, जबकि वनस्पंतियों में रहने वाला लोह बडी सरलतापूर्वक हमारे शरीर में घुल जाता है। जबकि वनस्पहतियों मे रहले वाला लोहा बडी सरलतापूर्वक हमारे शरीर में घुलय जाता है। कैल्शियम मांस के बराबर होता है, वह कडे पुट्रठों में एव हडि्डयों में ही पाया जाता है कोमल मांस जो आमतौर से खाया जाता है, उसमें एक प्रतिशत से भी कम कैल्शियम है मछली मे वह कुछ अधिक अवश्ये होता है पर रोटी से अधिक नही। मांस में रहने वाली खनिज गैस शरीर में जाकर संचित क्षार तत्वय को नष्ट  करती है, रक्ती चाप वृद्धि एवं मूत्र में एसिड उत्प न्नत करती है जवित पशु के तन्तुष अत्यहन्त‍ कोमल होते है किन्तु  उसके मरते ही कडे हो जाते है। यह कडापन पकने और पचने में भारी पड़ता है। जब मांस सडता है तभी वे कोमल तन्तुो कोमल पड़ते है। इसलिए ताजे मांस को कुछ समय हवा में लटका कर रखा जाता है ताकि वह सडने लगे और मुलायम हो जाए, सडन आरम्भम होने के साथ-साथ ही उसमें कई प्रकार के विष उत्न्ा      होले लगते है और कई घातक कीटाणुओं का जन्मन होता है। यह सडन शरीर मे पहुच कर जाने कितने प्रकार के उपद्रव खड़े करती है और खाने वाले के स्वा स्य्  को धीरे धीरे खोखला ही करती जाती है। रक्ते चाप और गुर्दे की बीमारियों में आम तौर से डाक्टवर मांस खाने को मनाही करते है। वह जानते है कि जब भले चंगे आदमी में मांस इस प्रकार की बीमारियॉं उत्परन्न  करता है तो रोगग्रस्तोक पर और अधिक बुरा प्रभाव डालेगा। पशुवृत्ति और पशु प्रकृति का प्रभाव मांस मे जुडा रहना स्वााभाविक है। मांसाहारी हिंस्त्रर पशुओं में जो क्रुरता पाई जाती है, उसे मांसाहारी का प्रत्यवक्ष परिणाम ही कह सकते है। मनुष्यध भी इस दुष्प्रकभाव से बच नही सकता उसके स्वा भव में आसुरी तत्वत बढतें ही जाऍंगे उनकी प्रक्रिया शरीर, मन, परिवार और समाज पर अवाछीनीय स्तकर की हो पडेगी। मांस महंगा है, दुष्पांच्य  है, काटै हुए पशुओं में से अधिकाश के रूगण होने से उनकी बीमारियां खाने वालो से घुस पडने का खतरा है। इतने पर भी पौष्टिकता के नाम पर जिस प्रोटिन का मांस में बाहुल्य  अच्छेह सिद्ध होते है। प्राणिवध का क्रूर्र कर्म साथ ही स्वाेस्य्  का विनाश देखते हुए कई बार लगता है कि कही बर्बरता को जीवित रखने के लिए ही तो मांसाहारी प्रवृत्ति को जीवित नहीं रखा जा हैं।  

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