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बंसोड कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 प्रवेश प्रारंभ (CPCT, DCA, PGDCA & TALLY)

created Jan 18th 2023, 08:42 by Vikram Thakre


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सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 100 सहपठित हिंदू उत्‍तराधिकार अधिनियम की धारा 14 अपील हिंदू विधवा स्‍त्री द्वारा अपने पति से उत्‍तराधिकार में विवादित संपत्ति प्राप्‍त करना- विवादित संपत्ति‍ का विक्रय करना- विक्रय का इस आधार पर आक्षेप करना कि विवादित संपत्ति में विधवा स्‍त्री ने सीमित स्‍वामित्‍व प्राप्‍त किया था इसलिए उस संपत्ति का विक्रय नहीं कर सकती थी- आक्षेप कायम रखे जाने योग्‍य नहीं- यदि एक हिंदू विधवा स्‍त्री अपने पति से कोई संपत्ति प्राप्‍त करती है तो वह उस संपत्ति की‍ पूर्ण स्‍वामित्‍व प्राप्‍त करती है और यदि वह उस संपत्ति का विक्रय आदि द्वारा अन्‍य संक्रामण करती ही है तो इस आधार पर अन्‍य संक्रामण पर आक्षेप नहीं किया जा सकता कि उस संपत्ति में उसका सीमित स्‍वामित्‍व है ऐसा आक्षेप कायम रखे जाने योग्‍य नहीं होता है और अभिखंडित कर दिया जाएगा।  
वर्तमान मामले का तथ्‍यात्‍मक पहलू विवादित नहीं है। सिंगारू अजुध्‍या देवी का पति और वादी धनीराम के पिता सगे भाई थे। वे वाद संपत्ति के संयुक्‍त स्‍वामी थे। सिंगारू की मृत्‍यु वर्ष 1924 में हो गई थी। वह संतानरहित था किंतु अजुध्‍या देवी से उसका विवाह हुआ था। उसकी मृत्‍यु पर अजुध्‍या देवी ने सीमित स्‍वामित्‍व जिसे विधि में विधवा सम्‍पदा कहा जाता है के रूप में उसकी संपत्ति को उत्‍तराधिकार में प्राप्‍त किया। उसने अपने पति सिंगारू से उत्‍तराधिकार में प्राप्‍त संपत्ति का विक्रय तारीख 05 दिसंबर, 1949 को वर्तमान अपीलार्थियों के पक्ष में किया। उस विक्रय को सिंगारू का भाई और वर्तमान प्रत्‍यर्थी-वादी धनीराम के पिता ने इस आधार पर चुनौती दी कि अजुध्‍या मात्र विधवा सम्‍पदा की ही धारक थी और यह भी कि विक्रय बिना विधिक आवश्‍यकता में की गई थी। अजुध्‍या और क्रेता वर्तमान अपीलार्थी प्रतिवादी के पूर्वाधिकारी होने के नाते प्रतिवादियों के रूप में अभिवाचित किए गए थे। अजुध्‍या ने वाद का विरोध नहीं किया। वर्तमान अपीलार्थियों के पूर्वाधिकारियों ने एक वाद फाइल किया और यह अभिवाक् किया कि विक्रय विधिक आवश्‍यकता में नहीं की गई थी। उक्‍त मामले को ज्‍येष्‍ठ उपन्‍यायाधीश द्वारा तारीख 23 जनवरी, 1951 के निर्णय प्रति प्रदर्श 1 द्वारा विनिश्चित किया गया था। तारीख 23 जनवरी, 1951 के उक्त निर्णय के विरूद्ध अपील फाइल की गई जिसे जिला न्‍यायाधीश द्वारा खारिज कर दिया गया। उक्‍त निर्णय पारित करने के पश्‍चात् अपीलार्थी प्रतिवादियों के पूर्वाधिकारियों द्वारा उसकी मृत्‍यु के पश्‍चात् अपीलार्थी प्रतिवादी काबिज रहे। अजुध्‍या की मृत्‍यु वर्ष 1988 में हो गई। उसकी मृत्‍यु के पश्‍चात् यह अपील उद्भूत करते हुए प्रत्‍यर्थी वादी ने घोषणा के लिए वाद फाइल किया कि वह उत्‍तरभोगी के रूप में अजुध्‍या की संपत्ति को उत्‍तराधिकार में पाने का हकदार था जिसे उसने अपीलार्थियों प्रतिवादियों को विक्रय कर दिया था और उसने अपने पक्ष में वाद भूमि के कब्‍जे के लिए डिक्री की भी ईप्‍सा की।
 

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