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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 29th 2022, 04:24 by lucky shrivatri
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भारतीय सेना में केवल पुरूष अधिकारियों की पदोन्नति के लिए ही विशेष चयन बोर्ड होने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से उठाए गए सवाल ने स्थायी कमीशन के लिए कानूनी लड़ाई जीतने के बावजूद महिलाओं को उचित हक नहीं मिलने की तरफ संकेत किया है। सेना में प्रमोशन के लिए चयन बोर्ड चयन बोर्ड फिलहाल पुरूषों के लिए ही गठित किए गए है। ऐसे में स्थायी कमीशन के रास्ते खुलने के बावजूद सेना में महिला अफसरों की तरक्की की राह में बाधा आ रही है। हालांकि सेना की तरफ से इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट से दो सप्ताह का समय मांगते हुए तर्क दिया गया कि अतिरिक्त रिक्तियों को भरने के लिए वित्त मंत्रालय से विशेष मंजूरी की जरूरत है।
सिर्फ पुरूष अधिकारियों के लिए ही चयन बोर्ड बनने से सबसे बड़ी विसंगति यही आ रही है कि वरिष्ठता के क्रम में महिला अधिकारी काफी पीछे रहने लगी है। एक तरफ भारतीय संविधान सबको समानता का अधिकार देता है वहीं दूसरी तरफ केन्द्र व राज्यों की सरकारे भी महिला सशक्तीकरण की दिशा में कई नवाचार करने में जुटी है। लेकिन सेना और सरकार के स्तर पर भारतीय सेना में महिलाओं को समान अवसर भी अदालत की चौखट पर पहुंचने के बाद ही मिलने शुरू हुए है। कभी शादी तो कभी बच्चों के नाम पर महिलाओं को सेना में उचित मौका देने से वंचित किया जाता रहा है, यह भी सबने देखा है। पुरूष प्रधान मानसिकता को दूर किए बिना महिलाओं को समान अवसर मिल पाएं इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए जब तमाम दूसरे मोर्चो पर महिलाओं को आगे आने का मौका मिल रहा है तब देश की सुरक्षा जैसे अहम मोर्चे पर उनकी भागीदारी को नकारा नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर भी गौर करना होगा, जिसमें उसने कहा है कि मामला जब हमारे पास आता है तो वित्तीय मंजूरी की जरूरत पड़ती है। लेकिन जब पुरूष अधिकारियों की बात आती है तो अतिरिक्त रिक्तियों की आवश्यकता नहीं होती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण में महिला सैन्य अफसरों को मूल वरिष्टता देने के निर्देश भी दिए हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि पदोन्नति में लैंगिक आधार पर भेदभाव अब नहीं होगा।
चिंता की बात यह है कि अदालतों की टिप्पणियों के बाद ही लैगिंक भेदभाव दूर करने के लिए सरकारें आगे आती है। पुरूष प्रधान मानसिकता वाले समाज को इस चिंता को छोड़ना ही होगा कि महिलाएं उनके वर्चस्व वाले क्षेत्रों में अधिकार जताने लगी है। भेदभाव व उपेक्षा का शिकार होती आई महिलाओं को न केवल सेना बल्कि हर मोर्चे पर आगे आने का अवसर मिलना चाहिए।
सिर्फ पुरूष अधिकारियों के लिए ही चयन बोर्ड बनने से सबसे बड़ी विसंगति यही आ रही है कि वरिष्ठता के क्रम में महिला अधिकारी काफी पीछे रहने लगी है। एक तरफ भारतीय संविधान सबको समानता का अधिकार देता है वहीं दूसरी तरफ केन्द्र व राज्यों की सरकारे भी महिला सशक्तीकरण की दिशा में कई नवाचार करने में जुटी है। लेकिन सेना और सरकार के स्तर पर भारतीय सेना में महिलाओं को समान अवसर भी अदालत की चौखट पर पहुंचने के बाद ही मिलने शुरू हुए है। कभी शादी तो कभी बच्चों के नाम पर महिलाओं को सेना में उचित मौका देने से वंचित किया जाता रहा है, यह भी सबने देखा है। पुरूष प्रधान मानसिकता को दूर किए बिना महिलाओं को समान अवसर मिल पाएं इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए जब तमाम दूसरे मोर्चो पर महिलाओं को आगे आने का मौका मिल रहा है तब देश की सुरक्षा जैसे अहम मोर्चे पर उनकी भागीदारी को नकारा नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर भी गौर करना होगा, जिसमें उसने कहा है कि मामला जब हमारे पास आता है तो वित्तीय मंजूरी की जरूरत पड़ती है। लेकिन जब पुरूष अधिकारियों की बात आती है तो अतिरिक्त रिक्तियों की आवश्यकता नहीं होती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण में महिला सैन्य अफसरों को मूल वरिष्टता देने के निर्देश भी दिए हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि पदोन्नति में लैंगिक आधार पर भेदभाव अब नहीं होगा।
चिंता की बात यह है कि अदालतों की टिप्पणियों के बाद ही लैगिंक भेदभाव दूर करने के लिए सरकारें आगे आती है। पुरूष प्रधान मानसिकता वाले समाज को इस चिंता को छोड़ना ही होगा कि महिलाएं उनके वर्चस्व वाले क्षेत्रों में अधिकार जताने लगी है। भेदभाव व उपेक्षा का शिकार होती आई महिलाओं को न केवल सेना बल्कि हर मोर्चे पर आगे आने का अवसर मिलना चाहिए।
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