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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 28th 2022, 03:58 by lovelesh shrivatri
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इस धारा में निर्णय की भाषा तथा अंतवस्तुओं के बारे में उपबंध दिए गए है। पूर्ववर्ती धारा 353 के अधीन दिया गया प्रत्येक निर्णय न्यायालय की भाषा में लिखा जाएगा। प्रत्येक निर्णय में निर्धारण के लिए प्रश्न, उस प्रश्न या प्रश्नों पर विनिश्चय और विनिश्चय के कारणों को अंतर्विष्ट किया जाएगा। यदि न्यायालय द्वारा दिया जाने वाला निर्णय दोषमुक्ति का है तो उक्त दशा में भारतीय दंड संहिता या अन्य विधि की उस धारा तथा अपराध का उल्लेख किया जाना आवश्यक होगा जिसके लिए अभियुक्त की दोषमुक्ति की गई है। इस धारा के उपबंध प्रकृति के है। अत: प्रत्येक निर्णय की अंतवस्तुओं से इन सभी बातों का समावेश आवश्यक होगा अन्यथा निर्णय अवैध होगा।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980 के अंतर्गत किए गए निवारक निरोध की दशा में उच्चतम न्यायालय ने यह विनिश्चित किया कि उच्च न्यायालय को किसी मामले में अपना अंतिम विनिश्चिय तब तक नहीं सुनना चाहिए जब तक कि कारणों सहित निर्णय सुनाए जाने हेतु तैयार न हो। प्रत्येक मामले के निर्णय में विशिष्टियों का दिया जाना आवश्यक है। दोषसिद्धि या दोषमुक्ति का प्रत्येक आदेश जिसमें विशिष्टियां पूरी नहीं है, इस धारा के भावबोध में निर्णय नहीं माना जाएगा। सत्र न्यायाधीश के समक्ष विचारित किए गए मामलों में अभियुक्त तथा अभियोजन द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों के समस्त बिंदुओं के अंतर्गत निष्कर्ष को विशिष्ट के रूप में अभिलिखित किया जाना आवश्यक होगा, अन्यथा निर्णय दूषित माना जाएगा। किंतु साक्ष्य में अभिलिखित प्रत्येक बात को निर्णय में समाविष्ट किया जाना आवश्यक नहीं है। जब कभी अपील की सुनवाई हो, तो उस दशा में साक्ष्य को पढ़ा जाना चाहिए। तथ्यों के अभिनिर्धारण के लिए जो साक्ष्य आवश्यक हो, निर्णय में उनका स्तर भी अभिलिखित किया जाना चाहिए।
निर्णय में केवल मामले के तथ्यों को ही अभिलिखित नहीं किया जाएगा अपितु निर्णय के कारणों तथा बिंदुओं का भी उल्लेख भी किया जाएगा। प्रत्येक निर्णय में अपराध तथा अपराध की सारवस्तु का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना आवश्यक होगा। सभी आरोपों के संबंध में संग्रहीत किए निष्कर्षों को प्रथक रीति से दिया जाना आवश्यक है।
धारा 354(3) के अनुसार यदि दोषसिद्धि मृत्युदंड अथवा आजीवन कारावास से या अनेक वर्षों की अवधि के कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए है तो निर्णय में दिए गए दंडादेश के कारणों का तथा मृत्यु के दंडादेश की दशा में ऐसे दंडादेश के विशेष कारणों का उल्लेख किया जाना परम आवश्यक है।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980 के अंतर्गत किए गए निवारक निरोध की दशा में उच्चतम न्यायालय ने यह विनिश्चित किया कि उच्च न्यायालय को किसी मामले में अपना अंतिम विनिश्चिय तब तक नहीं सुनना चाहिए जब तक कि कारणों सहित निर्णय सुनाए जाने हेतु तैयार न हो। प्रत्येक मामले के निर्णय में विशिष्टियों का दिया जाना आवश्यक है। दोषसिद्धि या दोषमुक्ति का प्रत्येक आदेश जिसमें विशिष्टियां पूरी नहीं है, इस धारा के भावबोध में निर्णय नहीं माना जाएगा। सत्र न्यायाधीश के समक्ष विचारित किए गए मामलों में अभियुक्त तथा अभियोजन द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों के समस्त बिंदुओं के अंतर्गत निष्कर्ष को विशिष्ट के रूप में अभिलिखित किया जाना आवश्यक होगा, अन्यथा निर्णय दूषित माना जाएगा। किंतु साक्ष्य में अभिलिखित प्रत्येक बात को निर्णय में समाविष्ट किया जाना आवश्यक नहीं है। जब कभी अपील की सुनवाई हो, तो उस दशा में साक्ष्य को पढ़ा जाना चाहिए। तथ्यों के अभिनिर्धारण के लिए जो साक्ष्य आवश्यक हो, निर्णय में उनका स्तर भी अभिलिखित किया जाना चाहिए।
निर्णय में केवल मामले के तथ्यों को ही अभिलिखित नहीं किया जाएगा अपितु निर्णय के कारणों तथा बिंदुओं का भी उल्लेख भी किया जाएगा। प्रत्येक निर्णय में अपराध तथा अपराध की सारवस्तु का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना आवश्यक होगा। सभी आरोपों के संबंध में संग्रहीत किए निष्कर्षों को प्रथक रीति से दिया जाना आवश्यक है।
धारा 354(3) के अनुसार यदि दोषसिद्धि मृत्युदंड अथवा आजीवन कारावास से या अनेक वर्षों की अवधि के कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए है तो निर्णय में दिए गए दंडादेश के कारणों का तथा मृत्यु के दंडादेश की दशा में ऐसे दंडादेश के विशेष कारणों का उल्लेख किया जाना परम आवश्यक है।
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