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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Nov 26th 2022, 04:15 by Jyotishrivatri


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इस धारा में स्‍थावर संपत्ति विषयक विवादों के संबंध में जिनसे लोकशांति भंग होने की संभावना हो, निस्‍तारण की प्रक्रिया का उल्‍लेख है। उपधारा (1) के अनुसार कार्यपालक मजिस्‍ट्रेट को इस संबंध में कार्यवाही करने के लिये अधिकृत किया गया है। कार्यपालक मजिस्‍ट्रेट द्वारा इस तरह की कार्यवाही पुलिस रिपोर्ट पर या प्राप्‍त इत्तिला के आधार पर स्‍वंय का समाधान हो जाने पर की जा सकेगी। इस धारा के अधीन कार्यवाही करने के लिये यह आवश्‍यक होगा कि भूमि या जल से संबंधित कोई विवाद ऐसा हो जिससे लोक शांति भंग होने की संभावना हो। इस धारा के अधीन प्रदत्त आदेश प्रशासनिक स्‍वरूप का होता है कि न्‍यायिक या अर्ध-न्‍यायिक प्रकृति का।  
इस धारा का मूल उद्देश्‍य ऐसे विवादों का शीघ्रता से निपटारा करने के लिये प्रक्रिया निर्धारित करना है जो कि भूमि या जल से संबंधित है तथा जिनसे लोक शांति भंग होना संभाव्‍य है। इस प्रकार की कार्यवाही से उन संपत्ति विषयक विवादों को बाधित नहीं किया जा सकता है। जिनके संबंध में पहले से ही कोई कार्यवाही लम्बित है। अत: लम्बित स्थिति में उक्‍त संपत्ति के बाबत धारा 145 के अधीन कोई भी कार्यवाही नहीं की जा सकती है।  
उल्‍लेखनीय है कि इस धारा के अधीन कार्यवाही करने के लिये जो विवाद भूमि या जल पद से संबंधित है उससे लोक शांति भंग होने की संभावना होनी चाहिये। यदि विवाद सिविल प्रकृति का है, अर्थात् भूमि या जल से संबंधित है किन्‍तु उससे लोक शांति भंग होना संभाव्‍य नहीं है, तो उक्‍त दशा में मजिस्‍ट्रेट इस धारा के अधीन कार्यवाही नहीं कर सकेगा। यदि धारा 145 के अधीन की गयी कार्यवाही में आदेश प्रतिकूल पक्षकार की अनुपस्थिति में पारित किया गया हो, तो ऐसा आदेश प्राकृतिक न्‍याय के नियमों के विपरीत होगा।  
यदि दो पक्षकारों के बीच किसी भूमि के संबंध में विवाद चल रहा हो तथा प्रत्‍येक पक्षकार अन-अपवर्जित कब्‍जे का दावा करता हो, तो ऐसे विवाद को लोक शांति के भंग होने की संभावना का कारण माना जाएगा। अत: इसके बाबत धारा 145 के अधीन कार्यवाही की जा सकेगी।  
भारत संघ बनाम मुसम्‍मात अजीबुन्निसा खातून के वाद में गुवाहाटी उच्‍च न्‍यायालय ने धारा 145 की व्‍याख्‍या करते हुए स्‍पष्‍ट किया कि इस धारा के अन्‍तर्गत चलाई जाने कार्यवाही का मुख्‍य उद्देश्‍य शांति भंग के खतरे का निवारण करना है, कि स्‍वत्‍व के प्रश्‍न को तय करना।  
इस धारा के अधीन मजिस्‍ट्रेट द्वारा पारित किया गया आदेश केवल अस्‍थायी प्रकृति का होता है तथा यह तब तक अस्तित्‍व में रहता है जब तक कि सक्षम अधिकारिता वाले न्‍यायालय द्वारा विवाद का निस्‍तारण नही कर दिया जाता है।  
  

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