Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 26th 2022, 04:09 by lucky shrivatri
2
392 words
            6 completed
        
	
	0
	
	Rating visible after 3 or more votes	
	
		
		
			
				
					
				
					
					
						
                        					
				
			
			
				
			
			
	
		
		
		
		
		
	
	
		
		
		
		
		
	
            
            
            
            
			
 saving score / loading statistics ...
			
				
	
    00:00
				लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता का भरोसा बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग को न केवल निष्पक्ष और निष्कलंक होना चाहिए बल्कि उसे ऐसा दिखना भी चाहिए। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट का यह कहना एकदम उचित हैं कि मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) के पद पर ऐसा व्यक्ति बैठना चाहिए तो मतबूत घुटनों  और कंधों वाला हो। ऐसा व्यक्ति जो प्रधानमंत्री के बारे में भी शिकायत मिलने पर उसी तरह कार्रवाई कर सके जैसे किसी साधारण नेता के खिलाफ आम तौर पर की जाती है। टीएन शेषन एकमात्र अपवाद कहे जा सकते हैं, जिनहोंने निर्वाचन आयोग को उसकी शक्तियों का अहसास कराया था। हालांकि उसके बाद कोई उतना दमदार सीईसी नहीं दिखा।  
ऐसा भी नहीं है कि बाद के सीईसी निष्पक्ष नहीं थे, पर सरकार चाहे किसी भी राजनीतिक दल की रही हो, चुनाव के दौरान सत्ताधारी दल से टकराने का माद्दा भी किसी ने नहीं दिखाया। इसलिए यह सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि आखिरकार सीईसी के रूप में दमदार अधिकारी की नियुक्ति क्यों नहीं की जाती है। निर्वाचन आयोग में नियुक्तियों को लेकर गाहे-बगाहे सवाल क्यों खड़े होते रहते है? यह बात सही है कि संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा बचाए बिना लोकतंत्र की रक्षा नहीं की जा सकती। और इसके लिए सबसे जरूरी है इन संस्थाओं में जिम्मेदारों की नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी और त्रुटिहीन बनाना। ऐसा नहीं है कि हमारे यहां चुनाव सुधार के प्रयास नहीं हुए। चुनाव आयोग और ऐसी ही अन्य संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्ति प्रक्रिया में भी समय-समय पर सुधार किए जाते रहे है। न्यायपालिका में नियुक्ति हो या केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआइ) जैसी संस्थाओं में, प्रक्रियागत खामियां कहां सामने आएं तो सुधार के प्रयास जारी रहने चाहिए। अदालत ने इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया हैं कि न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया भी समय के साथ बदली लेकर सरकार के अपने तर्क है। उसका कहना है क चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में अदालत को दखल नहीं देना चाहिए।
लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अपना काम ठीक से करें इसके लिए चेक एंड बैलेस की व्यवस्था जरूरी है। वहां इसलिए भी कि इनमें से कोई भी ऐसा काम नहीं कर पाए जो संविधान की भावना और लोकतांत्रिक व्यवस्था के विपरीत हो। बहरहाल, इस मामले में संविधान पीठ की सुनवाई पूरी हो गई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जो भी फैसला आएगा, वह देश के लोकतंत्र को मजबूत करने वाला साबित होगा।
			
			
	        ऐसा भी नहीं है कि बाद के सीईसी निष्पक्ष नहीं थे, पर सरकार चाहे किसी भी राजनीतिक दल की रही हो, चुनाव के दौरान सत्ताधारी दल से टकराने का माद्दा भी किसी ने नहीं दिखाया। इसलिए यह सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि आखिरकार सीईसी के रूप में दमदार अधिकारी की नियुक्ति क्यों नहीं की जाती है। निर्वाचन आयोग में नियुक्तियों को लेकर गाहे-बगाहे सवाल क्यों खड़े होते रहते है? यह बात सही है कि संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा बचाए बिना लोकतंत्र की रक्षा नहीं की जा सकती। और इसके लिए सबसे जरूरी है इन संस्थाओं में जिम्मेदारों की नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी और त्रुटिहीन बनाना। ऐसा नहीं है कि हमारे यहां चुनाव सुधार के प्रयास नहीं हुए। चुनाव आयोग और ऐसी ही अन्य संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्ति प्रक्रिया में भी समय-समय पर सुधार किए जाते रहे है। न्यायपालिका में नियुक्ति हो या केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआइ) जैसी संस्थाओं में, प्रक्रियागत खामियां कहां सामने आएं तो सुधार के प्रयास जारी रहने चाहिए। अदालत ने इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया हैं कि न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया भी समय के साथ बदली लेकर सरकार के अपने तर्क है। उसका कहना है क चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में अदालत को दखल नहीं देना चाहिए।
लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अपना काम ठीक से करें इसके लिए चेक एंड बैलेस की व्यवस्था जरूरी है। वहां इसलिए भी कि इनमें से कोई भी ऐसा काम नहीं कर पाए जो संविधान की भावना और लोकतांत्रिक व्यवस्था के विपरीत हो। बहरहाल, इस मामले में संविधान पीठ की सुनवाई पूरी हो गई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जो भी फैसला आएगा, वह देश के लोकतंत्र को मजबूत करने वाला साबित होगा।
 saving score / loading statistics ...