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created Nov 26th 2022, 02:29 by neetu bhannare


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साईं बाबा शिरडी की मसजिद में रहा करते थे। वे उसे द्वारका माई कहा करते थे। बाबा सत्‍संग के लिए आने वालों से अकसर कहा करते कि प्रत्‍येक प्राणी भगवान का स्‍वरूप है। जीव मात्र से प्रेम और दुखियों की सेवा करके ही भगवान की कृपा प्राप्‍त की जा सकती है। एक बार साईं बाबा के प्रति अटूट श्रद्धा रखने वाली श्रीमती तर्खड़ दर्शन के लिए शिरडी आईं। दोपहर के भोजन के समय जैसे ही उन्‍होंने थाली से रोटी का टुकड़ा उठाया और उसे मुँह में रखने ही वाली थीं कि अचानक एक कुत्‍ता सामने खड़ा हुआ।
उसकी आवाज सुनकर उन्‍हें लगा कि कुत्‍ता भूखा है। उन्‍होंने रोटी का टुकड़ा मुँह में डालकर कुत्‍ते के सामने डाल दिया। इतना ही नहीं, अपना पूरा भोजन उन्‍होंने उस कुत्‍ते को खिला दिया। इसके बाद वह बाबा के पास पहुँची। साईं बाबा भक्‍तों को राम नाम के महत्‍व से परिचित करा रहे थे। जैसे ही बाबा की दृष्टि महिला तर्खड़ पर गई, वे बोले, मॉं, तुमने बड़े प्रेम से मुझे रोटी खिलाई। मेरी आत्‍मा तृप्‍त हो गई। महिला ने कहा, बाबा, मैंने आपको भोजन कब कराया? बाबा बोले, अरे, कुछ देर पहले तुमने जिस कुत्‍ते को रोटी खिलाई थी, वह मेरा ही स्‍वरूप था। कुछ क्षण रुककर बाबा ने कहा, मॉं हजारों मील चलकर शिरडी आने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। किसी भी भूखे प्राणी को भोजन कराया करो, समझ लेना कि मेरा आशीर्वाद मिल गया। सद्गृहस्‍थ महिला यह सुनकर भाव-विभोर हो उठी।
 

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