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बंसोड कम्प्यूटर टायपिंग इन्स्टीट्यूट पोला ग्राउण्ड छिन्दवाड़ा म0प्र0 मो0 नं0 8982805777(TALLY AND CPCT NEW BATCH START)
created Nov 25th 2022, 12:27 by bansod typing
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किसी ऐसे अपराध का विचारण जो मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय नहीं है और जो ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है, जिसकी आयु उस तारीख को, जब वह न्यायालय के समक्ष हाजिर हो या लाया जाए, 16 वर्ष से कम है मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय द्वारा या किसी ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसे बालक अधिनियम, 1960 या किशोर अपराधियों के उपचार, प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिए उपबंध करने वाली तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन विशेष रूप से सशक्त किया गया है। सेशन न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दंडादेश दे सकता है किंतु उसके द्वारा दिए गए मृत्यु दंडादेश के उच्च न्यायालय द्वारा पुष्ट किए जाने की आवश्यकता होगी। सहायक सेशन न्यायाधीश मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास के दंडादेश के सिवाय कोई ऐसा दंडादेश दे सकता है जो विधि द्वारा प्राधिकृत है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय मृत्यु या आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास के दंडोदश के सिवाय कोई ऐसा दंडादेश दे सकता है जो विधि द्वारा प्राधिकृत है। जब एक विचारण में कोई व्यक्ति दो या अधिक अपराधों के लिए दोषसिद्ध किया जाता है तब, भारतीय दंड संहिता की धारा 71 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, न्यायालय उसे उन अपराधों के लिए विहित विभिन्न दंडों में से उन दंडों के लिए जिन्हें देने के लिए ऐसा न्यायालय सक्षम है, दंडादेश दे सकता है, जब ऐसे दंड कारावास के रूप में हों तब, यदि न्यायालय ने यह निदेश न दिया हो कि ऐसे दंड साथ-साथ भोग जाएंगे, तो वे ऐसे क्रम से एक के बाद एक प्रारंभ होंगे जिसका न्यायालय निदेश दे। दंडादेशों के क्रमवर्ती होने की दशा में केवल इस कारण से कई अपराधों के लिए संकलित दंड उस दंड से अधिक है जो वह न्यायालय एक अपराध के लिए दोषसिद्धि पर देने के लिए सक्षम है, न्यायालय के लिए यह आवश्यक नहीं होगा कि अपराधी को उच्चतर न्यायालय के समक्ष विचारण के लिए भेजे। अभियोजन कहानी एवं अभियोजन साक्षी महेश के कथनों में काफी विरोधाभास होने के बाद भी विचारण न्यायालय द्वारा अपीलार्थीगण को दंडित कर भारी न्यायिक भूल की है। उक्त प्रकरण में विचारण न्यायालय द्वारा अपने निर्णय की कंडिका 9 में व्यक्त किया गया है कि साक्षी महेश के प्रतिपरीक्षण में किए गए प्रतिपरीक्षण के दौरान अपीलार्थीगण के अधिवक्ता द्वारा नक्शा-मौका एवं अपराधियों के कथन अपने मन से लेख करने का सुझाव प्रतिपरीक्षण में दिया गया है यह भी सुझाव दिया गया है कि अपीलार्थीगण के कथन अपने मन से लिखे गए हैं। अपीलार्थीगण 2014 से लगातार उक्त प्रकरण में न्यायालय में उपस्थित हो रहे हैं। अपीलार्थीगण द्वारा स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं किया गया है।
