Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 23rd 2022, 05:17 by lucky shrivatri
4
319 words
11 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
हमने सेशन न्यायाधीश के तर्कों पर गंभीरतापूर्वक विचार कर लिया है। किंतु हम विधि के संबंध में हैं। प्रत्येक मामले का निर्णय उसके विशिष्ट तथ्यों के आधार पर किया जाना चाहिए। विधि का ऐसा को हो कि प्रत्येक मामलें में जिसमें केवल एक अभियुक्त द्वारा चाकू से क्षति पहुंचाई जाए, दूसरे अभियुक्त सहायता से हत्या कारित करने के लिए सिद्धदोष नहीं किया जा सकता। उन विनिश्चयों में जिनका विधि को इतने व्यापक रूप में अधिकथित नहीं किया गया है। उन मामलों में जिनका अवलंब सेशन द्वारा अप्रख्यापित विधि को उन मामलों को विशिष्ट तथ्यों तक ही सीमित मानना होगा।
भारतीय दंड संहिता (135) की धारा 34 में यह अधिकथित है कि जबकि कोई आपराधिक कार्य कई को अग्रसर करने में किया जाता है तब ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति उस कार्य के लिए उसी प्रकार अकेले उसी ने किया हो। विधि के उक्त उपबंध में दांडिक विधिशास्त्र के क्षेत्र में प्रतिनिधायी दायित्व आपराधिक कार्य किसी एक अभियुक्त द्वारा ही कारित हो सकता है फिर भी यदि वह कार्य सभी अभियुक्त करने के लिए किया गया हो तो अन्य अभियुक्त भी अपराध के लिए दोषी माने जाते हैं।
आशय का प्रश्न कुछ कठिनाई प्रस्तुत करता है। सामान्यतया आशय ऐसा विषय है जो उस जिसका आशय (270) प्रश्नगत है। किंतु दांडिक विचारणों को शासित करने वाले सिद्धांतों के अनुसार कि साबित करने का भार सदैव ही अभियोजन पर होता है। आशय किसी अन्य तथ्य की भांति या तो द्वारा साबित (315) किया जा सकता है। अभियोजन किसी अभियुक्त के आशय को पारिस्थितिक साक्ष्य है कि इस प्रकृति का साक्ष्य अभियुक्त की दोषिता से संगत होना चाहिए और वह उसकी निर्दोषित न्यायालय के उन (360) विनिश्चयों में, जिनका अवलंब सेशन न्यायाधीश ने लिया है, अभियोजन द्वारा उतरता। अभियोजन के साक्ष्य में इस कमी के कारण ही न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया संहिता की धारा (405) 34 की सहायता से मूल अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता था।
भारतीय दंड संहिता (135) की धारा 34 में यह अधिकथित है कि जबकि कोई आपराधिक कार्य कई को अग्रसर करने में किया जाता है तब ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति उस कार्य के लिए उसी प्रकार अकेले उसी ने किया हो। विधि के उक्त उपबंध में दांडिक विधिशास्त्र के क्षेत्र में प्रतिनिधायी दायित्व आपराधिक कार्य किसी एक अभियुक्त द्वारा ही कारित हो सकता है फिर भी यदि वह कार्य सभी अभियुक्त करने के लिए किया गया हो तो अन्य अभियुक्त भी अपराध के लिए दोषी माने जाते हैं।
आशय का प्रश्न कुछ कठिनाई प्रस्तुत करता है। सामान्यतया आशय ऐसा विषय है जो उस जिसका आशय (270) प्रश्नगत है। किंतु दांडिक विचारणों को शासित करने वाले सिद्धांतों के अनुसार कि साबित करने का भार सदैव ही अभियोजन पर होता है। आशय किसी अन्य तथ्य की भांति या तो द्वारा साबित (315) किया जा सकता है। अभियोजन किसी अभियुक्त के आशय को पारिस्थितिक साक्ष्य है कि इस प्रकृति का साक्ष्य अभियुक्त की दोषिता से संगत होना चाहिए और वह उसकी निर्दोषित न्यायालय के उन (360) विनिश्चयों में, जिनका अवलंब सेशन न्यायाधीश ने लिया है, अभियोजन द्वारा उतरता। अभियोजन के साक्ष्य में इस कमी के कारण ही न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया संहिता की धारा (405) 34 की सहायता से मूल अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता था।
saving score / loading statistics ...