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created Nov 22nd 2022, 13:21 by neetu bhannare


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रंभा मोहनदास करमचंद गांधी के परिवार की पुरानी सेविका थी। वह पढ़ी-लिखी नहीं थी, किंतु इतनी धार्मिक थी कि रामायण को हाथ जोड़कर और तुलसी को सिर नवाकर ही अन्‍न-जल ग्रहण करती थी। एक रात बालक गांधी को सोने से पहले डर लगा। उसे लगा कि कोई भूत-प्रेत सामने खड़ा है। डर से उन्‍हें रात भर नींद नहीं आई। सवेरे रंभा ने लाल-लाल आंखें देखीं, तो उन्‍होंने गांधी से इसके बारे में पूछा गांधी ने पूरी बात सच सच बता दी। रंभा बोली, मेरे पास भय भगाने की अचूक दवा है। जब भी डर लगे, तो राम नाम जप लिया करो। भगवान राम के नाम को सुनकर कोई बुरी आत्‍मा पास नहीं फटकती। गांधीजी ने यह नुसखा अपनाया, तो उन्‍हें लगा कि इसमें बहुत ताकत है। बाद में संत लाधा महाराज के मुख से रामकथा सुनकर उनकी राम-नाम में आस्‍था और सुदृढ़ हो गई। बड़े होने पर गांधीजी ने अनेक ग्रंथों का अध्‍ययन किया, तो वे समझ गए कि भय से पूरी तरह मुक्ति भी ठीक नहीं होती। एक बार वर्धा में एक व्‍यक्ति उनसे मिलने आया। गांधीजी से उसने पूछा, बापू! पूरी तरह भयमुक्‍त होने के उपाय बताऍं। गांधीजी ने कहा, मैं स्‍वयं सर्वथा भयमुक्‍त नहीं हूँ। काम क्रोध ऐसे शत्रु हैं, जिनसे भय के कारण ही बचा जा सकता है। इन्‍हें जीत लेने से बाहरी भय का उपद्रव अपने-आप मिट जाता है। राग-आसक्ति दूर हो, तो निर्भयता सहज प्राप्‍त हो जाए।

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