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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 22nd 2022, 06:18 by lovelesh shrivatri
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इस धारा की तुलना भारतीय दंड संहिता की धारा 75 से की जा सकती है। इस धारा के उपबंध अपराधों के निवारण हेतु उक्त संरचनात्मक प्रावधान के रूप में अपनाए गए है। इस धारा के अनुसार कतिपय अपराधों के लिए सिद्धदोष अभियुक्त को सदाचारण में रखे जाने के उद्देश्य से अपने ठौर ठिकानों की सूचना देते रहने के लिए आदेश दिया जा सकता हैं। परंतु अभियुक्त पर इस प्रकार का निबंधन पांच वर्ष से अधिक समय के लिए नहीं लगाया जा सकेगा क्योंकि इससे उसकी स्वाधीनता प्रभावित होती है। अभियुक्त की दोषसिद्धि भारत के किसी न्यायालय द्वारा की गई हो। अभियुक्त उपबंध किसी अपराध के लिए भारत के किसी न्यायालय द्वारा पुन: दोषसिद्ध पाया गया हो। परंतु न्यायालय का स्तर मजिस्ट्रेट वर्ग 2 की श्रेणी से नीचे का न हो। उपयुक्त तीनों शर्तों पूरी होने की दशा में अभियुक्त को दंडादेश सुनाते समय न्यायालय अगले पांच वर्षों तक उसे अपना पता या ठौर ठिकानों की सूचना देते रहने के लिए आदेशित कर सकता है। ऐसा आदेश किसी अपीलीय न्यायालय, उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा पारित किया जा सकता है।
जब कोई न्यायालय जुर्माने का दंडादेश देता है या कोई ऐसा दंडादेश जिसके अंतर्गत मृत्यु दंडादेश भी देता है जिसका भाग जुर्माना भी है, तब निर्णय देते समय वह न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि वसूल किए गए सब जुर्माने या उसके किसी भाग का समायोजन तो नहीं है। किसी व्यक्ति को उस अपराध द्वारा हुई किसी हानि या क्षति का प्रतिकर देने में किया जाए, यदि न्यायालय की राय में ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रतिकर सिविल न्यायालय में वसूल किया जा सकता है। उस दशा में जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु कारित करने के या ऐसे अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करने के लिए दोषसिद्ध किया जाता है, उन व्यक्तियों को, जो ऐसे मृत्यु से अपने को हुई हानि के लिए दंडादिष्ट व्यक्ति से नुकसानी वसूल करने के लिए घातक दुर्घटना अधिनियम 1855 के अधीन हकदार है, प्रतिकार देने में किया जाए।
जब कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए जिसके अंतर्गत चोरी, आपराधिक दुर्विनियोग, आपराधिक न्यासभंग या छल भी है, या चुराई हुई संपत्ति को उस दशा में जब वह यह जानता है या उसको यह विश्वास करने का कारण है कि वह चुराई हुई है, बेईमानी से प्राप्त करने या रखने के लिए या उसके व्ययन में स्वेच्छया सहायता करने के लिए, दोषसिद्ध किया जाए, तब ऐसी संपत्ति के सद्भावनापूर्ण क्रेता को ऐसी संपत्ति उसके हकदार व्यक्तियों के कब्जे में लौटा दी जाने की दशा में उसकी हानि के लिए प्रतिकार देने में किया जाए।
जब कोई न्यायालय जुर्माने का दंडादेश देता है या कोई ऐसा दंडादेश जिसके अंतर्गत मृत्यु दंडादेश भी देता है जिसका भाग जुर्माना भी है, तब निर्णय देते समय वह न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि वसूल किए गए सब जुर्माने या उसके किसी भाग का समायोजन तो नहीं है। किसी व्यक्ति को उस अपराध द्वारा हुई किसी हानि या क्षति का प्रतिकर देने में किया जाए, यदि न्यायालय की राय में ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रतिकर सिविल न्यायालय में वसूल किया जा सकता है। उस दशा में जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु कारित करने के या ऐसे अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करने के लिए दोषसिद्ध किया जाता है, उन व्यक्तियों को, जो ऐसे मृत्यु से अपने को हुई हानि के लिए दंडादिष्ट व्यक्ति से नुकसानी वसूल करने के लिए घातक दुर्घटना अधिनियम 1855 के अधीन हकदार है, प्रतिकार देने में किया जाए।
जब कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए जिसके अंतर्गत चोरी, आपराधिक दुर्विनियोग, आपराधिक न्यासभंग या छल भी है, या चुराई हुई संपत्ति को उस दशा में जब वह यह जानता है या उसको यह विश्वास करने का कारण है कि वह चुराई हुई है, बेईमानी से प्राप्त करने या रखने के लिए या उसके व्ययन में स्वेच्छया सहायता करने के लिए, दोषसिद्ध किया जाए, तब ऐसी संपत्ति के सद्भावनापूर्ण क्रेता को ऐसी संपत्ति उसके हकदार व्यक्तियों के कब्जे में लौटा दी जाने की दशा में उसकी हानि के लिए प्रतिकार देने में किया जाए।
