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बंसोड कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट मेन रोड़ गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा मो0नं0 8982805777 प्रो.सचिन बंसोड (CPCT, DCA, PGDCA) प्रवेश प्रारंभ

created Nov 22nd 2022, 04:19 by Ashu Soni


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इसमें संदेह है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के इस कथन से जिला जजों को कोई सही संदेश गया होगा कि वे जघन्‍य अपराध के मामलों में इसलिए जमानत देने से हिचकते हैं कि कहीं उन्‍हें निशाना बनाया जाए। क्‍या सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश यह कहना चाहते हैं कि जिला जजों को संगीन मामलों में जमानत देने का काम उदारतापूर्वक करना चाहिए? यह ठीक है कि उन्‍होंने जिला जजों की दक्षता पर कोई प्रश्‍न नहीं खड़ा किया, लेकिन इसके आसार तो हैं ही कि उनकी टिप्‍पणी से वे यह समझें कि उन्‍हें संगीन मामलों में भी जमानत देने में उदारता का परिचय देना चाहिए। अच्‍छा होता कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश उन कारणों पर केवल गौर करते, बल्कि उनका निवारण भी करते, जिनके चलते जमानत के मामले उच्‍चतर न्‍यायपालिका में पहुंच रहे हैं। वैसे ऐसे मामलों की संख्‍या इतनी भी अधिक नहीं है कि वे हाई कोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट के लिए चिंता का विषय बन जाएं। इससे इन्‍कार नहीं कि जमानत एक ऐसा नियम है, जिसमें अपवाद की गुंजाइश कम रहनी चाहिए, लेकिन हर संगीन मामले में जमानत देने का नियम भी तो नहीं है। यदि सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश को जिला स्‍तर के जजों की क्षमता पर यकीन है तो फिर उन्‍हें उनके जमानत संबंधी फैसलों पर भी भरोसा करना चाहिए। यह विचित्र है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश एक ओर जिला जजों से यह कह रहे हैं कि वे खुद पर भरोसा रखें और दूसरी ओर स्‍वयं उन पर प्रश्‍न भी खड़ा कर रहे हैं। अच्‍छा होता कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश इस बात को ध्‍यान में रखते कि जिला जज जिन परिस्थितियों में काम करते हैं, वे उनसे सर्वथा अलग हैं, जिनमें उच्‍चतर न्‍यायपालिका के न्‍यायाधीश करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्‍यायाधीश कुछ भी कहें, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कई बार उच्‍चतर न्‍यायपालिका की ओर से जमानत देने के फैसलों पर भी सवाल उठते हैं। अभी पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा के अभियुक्‍त गौतम नवलखा को जेल के स्‍थान पर उनकी पसंद के घर में नजरबंद रखने का जो आदेश दिया, वह सवाल खड़े करने वाला है। गौतम नवलखा पर नक्सलियों के अलावा कश्‍मीरी आतंकियों से भी संबंध रखने के आरोप हैं।
यदि आने वाले समय में ऐसे आरोपों से घिरे लोग नजरबंद होने की सुविधा चाहेंगे तो क्या वह उन्‍हें प्रदान की जाएगी? क्‍या इस तरह के फैसले जिला जज दे सकते हैं? इससे संतुष्‍ट नहीं हुआ जा सकता कि मुख्य न्‍यायाधीश ने जिला न्‍यायपालिका की सेवा शर्तों और बुनियादी ढांचे में सुधार की आवश्‍यकता जताई, क्‍योंकि इस दिशा में कोई ठोस पहल होती नहीं दिखती। अच्‍छा होगा कि वह इस आवश्‍यकता की पूर्ति में सहायक बनें।
 
 

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