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created Nov 22nd 2022, 03:24 by Shreebageshwar Academy


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कई बार प्रत्‍यक्ष आंतरिक संकट मूर्तिमान रूप में दिखाई नहीं पड़ते, किंतु असंतोष, विरोध, भ्रष्‍टाचार, कदाचार आदि के रूप में समाज में व्‍याप्‍त रहते हैं और समयानुसार अपना विभत्‍स रूप राष्‍ट्र के संकट के रूपमें दिखाते रहते हैं। इसलिए बौद्धिक या भावनात्‍मक रूप में विद्यमान इन राष्‍ट्रीय संकटों का निदान शासन द्वारा होते रहना चाहिए। इस दिशा में शिक्षा और संस्‍कारों की भी बहुत भूमिका होती है। भारत पर अतीत में जितने भी विदेशी आक्रमण हुए, उनका यदि ठीक से विश्‍लेषण किया जाए तो समझ में आता है कि हमारी आपसी कलह से छिन्‍न-भिन्‍न और जर्जर जीवन ही उन आक्रमणों का आधार बना। आज इस्‍लाम के साथ ईसाइयत का जिन इरादों के साथ प्रसार हो रहा है, वह भी देश के लिए खतरा बन रहा है। छल-कपट से कराया जा रहा मतांतरण एक बहुत बड़ा संकट है राष्‍ट्र की सुरक्षा के लिए। पंथ परिवर्तन मात्र से किसी की मानसिकता या हृहय परिवर्तन नहीं हो सकता, परंतु भारत में मतांतरण जिस इरादे से हो रहे हैं, उससे यह स्‍पष्‍ट है कि यह एक अनुचित और अवांछनीय गतिविधि है। आम तौर पर पंथ परिवर्तन गंभीर दार्शनिक या आध्‍यात्मिक चिंतन का परिणाम नहीं होता, बल्कि वह गरीबी, अज्ञानता और निरक्षरता के अनुचित लाभ का नतीजा होता है। इसका उदाहरण पग-पग पग दिखाई पड़ता है। आदिवासी क्षेत्रों में कुछ समूहों की निर्धनता, निरक्षरता का लाभ उठाते हुए उनका मतांतरण चोरी चुपके करा दिया जाता है। ऐसे लोग गले में उस पंथ का प्रतिक चिन्‍ह लटकाए, परंतु हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों आदि को यथावत मनाते हुए मिल जाएंगे। लोभवश मतांतरण करने से परंपराएं और संस्‍कार नहीं समाप्‍त किए जा सकते, लेकिन समय के साथ उन पर असर पड़ता हे और विशेष रूप से मतांतरित परिवारों की दूसरी-तीसरी पीढ़ी के लोगों में। किसी के भोलेपन और अज्ञानता का अनुचित लाभ उठाकर पंथ परिवर्तन करने वालों पर कठोर प्रतिबंध लगना ही चाहिए।   

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