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बंसोड कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट मेन रोड़ गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा मो0नं0 8982805777 प्रो.सचिन बंसोड (CPCT, DCA, PGDCA) प्रवेश प्रारंभ

created Jun 30th 2022, 05:38 by Vikram Thakre


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मनुष्य अपने जीवन को सुख-सुविधामय बनाने के लिए विभिन्‍न वस्‍तुओं का उपयोग और उपभोग करता है। उसे लगने लगा है कि उपभोग ही सुख है। उस पर पाश्चात्‍य उपभोक्‍तावाद का असर हो रहा है, इसी का फायदा उठाकर उत्‍पादक अपनी वस्‍तुओं को बढ़ा-चढ़ाकर उसके सामने प्रस्‍तुत करते हैं। इसे ही विज्ञापन कहा जाता है। आजकल इसका प्रचार-प्रसार इतना अधिक हो गया है कि वर्तमान को विज्ञापन का युग कहा जाने लगा है। विज्ञापन ने हमारे जीवन को अत्‍यंत गहराई से प्रभावित किया है। यह हमारा स्‍वभाव बनता जा रहा है कि दुकानों पर वस्‍तुओं के उन्‍हीं ब्रांडों की मांग करते हैं जिन्‍हें हम समाचार पत्र, दूरदर्शन या पत्र-पत्रिकाओं में दिए गए विज्ञापनों में देखते हैं। हमने विज्ञापन में किसी साबुन या टूथपेस्‍ट के गुणों की लुभावनी भाषा सुनी और हम उसे खरीदने के लिए उत्‍सुक हो उठते हैं। विज्ञापनों की भ्रामक और लुभावनी भाषा बच्‍चों पर सर्वाधिक प्रभाव डालती है। बच्‍चे चाहते हैं कि वे उन्‍हीं वस्‍तुओं का प्रयोग करें जो शाहरुख खान, अमिताभ बच्‍चन या प्रियंका चोपड़ा द्वारा विज्ञापित करते हुए बेची जा रही हैं। वास्‍तव में बच्‍चों का कोमल मन और मस्तिष्‍क यह नहीं जान पाता है कि इन वस्‍तुओं के सच्‍चे-झूठे बखान के लिए ही उन्‍होंने लाखों रुपये एडवांस में ले रखे हैं। विज्ञापन का लाभ यह है कि इससे हमारे सामने चुनाव का विकल्‍प उपस्थित हो जाता है। किसी उत्‍पादक विशेष का बाजार से एकाधिकार खत्‍म हो जाता है। उपभोक्‍ता वस्तुओं के मूल्‍य और गुणवत्‍ता का तुलनात्‍मक अध्‍ययन कर आवश्‍यक वस्‍तुएं खरीदते हैं, परंतु इसके लिए इनकी लुभावनी भाषा से बचने की आवश्‍यकता रहती है। विज्ञापन भारतीय संस्‍कृति के लिए हितकारी नहीं। आज कोई भी विज्ञापन हो या किसी आयुवर्ग के विज्ञापन हों, पुरुषोपयोगी वस्‍तुओं का विज्ञापन हो, बच्‍चों या महिलाओं के प्रयोग की वस्‍तुओं का विज्ञापन हो, अनेक विज्ञापन परिवार के सदस्‍यों के साथ नहीं देखे जा सकते हैं। एक ओर विज्ञापनों से वस्‍तुओं का मूल्‍य बढ़ रहा हैं, तो दूसरी ओर बच्‍चों का कोमल मन विकृत हो रहा है और वे जिद्दी होते जा रहे हैं। विज्ञापनों में छोटे होते जा रहे नायक-नायिका के वस्‍त्रों को देखकर युवावर्ग में भी अधनंगानप बढ़ रहा है। गरीब और मध्‍यम वर्ग का वजट विज्ञापनों के कारण बिगड़ रहा है। हमें बहुत सोच-समझकर ही विज्ञापनों पर विश्‍वास करना चाहिए।

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