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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो. नं. 9098909565
created May 18th 2022, 13:06 by Shankar D.
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इस मामले में प्रत्यर्थी द्वारा आवेदक के विरुद्ध एक परिवाद मानहानि के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष फाइल किया गया। आवेदक की माता और प्रत्यर्थी संख्या 1 आपस में सगी बहिनें हैं और प्रत्यर्थी संख्या 2, प्रत्यर्थी संख्या 1 का पुत्र है तथा आवेदक का मौसेरा भाई है। प्रत्यर्थी संख्या 1 और आवेदक की माता श्रीमती कैलाश की मृत्यु हो गई। कैलाश की मृत्यु के पश्चात् उसकी स्थावर संपत्ति उत्तराधिकारियों अर्थात् निशा, तनिशा और प्रिया में विभाजित होनी थी किन्तु प्रत्यर्थी संख्या 2 के अनुसार कैलाश ने प्रत्यर्थी संख्या 2 के पक्ष में विल निष्पादित की हुई थी और उस विल के आधार पर प्रत्यर्थी संख्या 2 ने दावा किया कि वह संपूर्ण स्थावन और जंगम संपत्ति की हकदार है जो कैलाश ने अपनी मृत्यु के पश्चात् छोड़ी है। आवेदक श्रीमती भगवंती का पुत्र है और वह श्रीमती भगवंती का एकमात्र उत्तराधिकारी है, अत: उसने यह दावा किया है कि कैलाश द्वारा छोड़ी गई संपत्ति के एक तिहाई भाग पर उसका उत्तराधिकार है। कैलाश की मृत्यु के पश्चात् आवेदक का हिस्सा प्रत्यर्शियों द्वारा आवेदक को नहीं दिया गया है, इसलिए उसने कैलाश द्वारा छोड़ी गई संपत्ति के एक तिहाई भाग पर दावा करते हुए नोटिस भेजा और साथ ही उसने इस संबंध में किसी भी विल के निष्पादित किए जाने से इनकार किया। आवेदक ने नोटिस में यह उल्लेख किया कि प्रत्यर्थियों ने कूटरचित दस्तावेज तैयार किए हैं और कैलाश की सम्पूर्ण संपति् को हड़पने का प्रयास किया है। नोटिस के अन्तिम पैरा में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख किया गया है कि यदि आवेदक को उसका एक तिहाई हिस्सा नहीं दिया जाता है, तब वह उसके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करेगा। इस नोटिस से व्यथित होकर दोनों प्रत्यर्थियों ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 200 के अधीन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, रायगढ़ के समक्ष दंड संहिता की धारा 500 के अधीन दंडनीय अपराध के लिए परिवाद फाइल किया जिसमें यह दावा किया कि कैलाश ने अपनी मृत्यु के पूर्व स्वेच्छया विल निष्पादित की थी किन्तु अपीलार्थी का यह अभिकथन है कि वह विल कूटरचित है और वह प्रत्यर्थियों द्वारा ही तैयार की गई है और उन्होंने इस तथ्य का विश्वास अन्य नातेदारों तथा ज्ञात व्यक्तियों को भी दिलाया है और यह भी अभिकथन किया है कि उनका यह कृत्य मानहानि की परिधि में आता है इस कृत्य से अपने नातेदारों के बीच तथा परिवार में प्रत्यर्थियों की छवि धूमिल होती है। विद्वान मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, के कथन अभिलिखित किए और इसके पश्चात् मामले को निपटाने के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, रायगढ़ के पास भेज दिया। विद्वान न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी, रायगढ़ ने दोनों पक्षकारों की सुन वाई करने के पश्चात् तारीख 21 मई के आदेश द्वारा दंड संहिता की धारा 500 के अधीन दंडनीय अपराध के लिए शिकायत दर्ज की और आवेदक को नोटिस जारी किया। तारीख 21 मई के आक्षेपित आदेश से व्यथित होकर आवेदक ने यह आवेदन इस आधार पर फाइल किया है कि प्रत्यर्थियों ने आवेदन पर यह दबाव डाला है कि वह सिविल वाद में प्रतिरक्षा के लिए कोई कार्यवाही न करे।
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