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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created May 17th 2022, 03:12 by sandhya shrivatri
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मुगल सम्राट अकबर के साम्राज्य का झंडा फहराने वाले आमेर के महाराजा मानसिंह प्रथम थे। इन महाबली ने अकबर का सेनापति बनकर अफगानिस्तान के काबुल-कंधार को फतेह किया था। मानसिंह ने आमेर के ढूंढाड़ राज्य के नाम का पूरी दुनिया में डंका बजा दिया था। इन्होंने अपने जीवन में 114 छोटे-बड़े युद्ध लड़े और सबमें जीत का झंड़ा गाड़ा।
अकबर के शासन में केवल दो ही व्यक्ति ऐसे थे, जिनको सात हजारी मनसब मिला था। पहले थे- अकबर के भाई अजीज कोका और दूसरे थे आमेर के मानसिंह। उनके पास सात हजारी सेना और खुद की सेना में 21 हजार बलशाली सैनिक थे। बंगाल, बिहार, उड़ीसा, गुजरात, काबुल, कंधार के अलावा उन्होंने बड़े-बड़े योद्धाओं को अकबर के कदमों में लाकर डाल दिया था। मानसिंह अपने पिता के समय से ही अकबर के दरबार में चले गए थे। इनकी ऐतिहासिक वीरता के कारण उनको अकबर के नौ रत्नों में से एक गिना जाता था।
इतिहास की किताबों में राघवेन्द्र सिंह मनोहर ने लिखा है कि, मानसिंह ने अफगानिस्तान के काबुल के अलावा भारत के जिन राज्यों को जीता, वहां से जीते हुए धन को आमेर भेजा करते थे। उन्होंने धन को जयगढ़ नाहरगढ़ के किलों में भूमिगत रखा था। कुछ का यह भी मानना हैं कि मानसिंह द्वारा भेजे गए धन से जयपुर को बसाया गया था। अकबर के आदेश पर मानसिंह ने बिहार में दाऊद खान पठान के विद्रोह को पूरी तरह से दबा दिया था। काबुल को फतेह कर वहां के सूबेदार बने। वापसी में युसूफजाई और लूटपाट करने वाले अन्य उपद्रवियों को दबाकर अकबर की अधीनता स्वीकार करवाई। अकबर ने उन्हें बिहार का सूबेदार बनाया। मानसिंह ने वहां गिद्धोर के शक्तिशाली राजा पूरणमल को हराया। काफी धन सम्पत्ति जीती।
खड़गपुर के राजा को परास्त कर उसका धन भी लूटा। बिहार के प्रर्णिया, ताजपुरा, दरभंगा को जीतकर धन हासिल किया। मानसिंह ने उड़ीसा को फतेह किया, उसके बाद अफगान विद्रोह को दबाया। उड़ीसा में मुगल साम्राज्य स्थापित करने के बाद वे बंगाल विजय के अभियान पर निकल पड़े।
अकबर के शासन में केवल दो ही व्यक्ति ऐसे थे, जिनको सात हजारी मनसब मिला था। पहले थे- अकबर के भाई अजीज कोका और दूसरे थे आमेर के मानसिंह। उनके पास सात हजारी सेना और खुद की सेना में 21 हजार बलशाली सैनिक थे। बंगाल, बिहार, उड़ीसा, गुजरात, काबुल, कंधार के अलावा उन्होंने बड़े-बड़े योद्धाओं को अकबर के कदमों में लाकर डाल दिया था। मानसिंह अपने पिता के समय से ही अकबर के दरबार में चले गए थे। इनकी ऐतिहासिक वीरता के कारण उनको अकबर के नौ रत्नों में से एक गिना जाता था।
इतिहास की किताबों में राघवेन्द्र सिंह मनोहर ने लिखा है कि, मानसिंह ने अफगानिस्तान के काबुल के अलावा भारत के जिन राज्यों को जीता, वहां से जीते हुए धन को आमेर भेजा करते थे। उन्होंने धन को जयगढ़ नाहरगढ़ के किलों में भूमिगत रखा था। कुछ का यह भी मानना हैं कि मानसिंह द्वारा भेजे गए धन से जयपुर को बसाया गया था। अकबर के आदेश पर मानसिंह ने बिहार में दाऊद खान पठान के विद्रोह को पूरी तरह से दबा दिया था। काबुल को फतेह कर वहां के सूबेदार बने। वापसी में युसूफजाई और लूटपाट करने वाले अन्य उपद्रवियों को दबाकर अकबर की अधीनता स्वीकार करवाई। अकबर ने उन्हें बिहार का सूबेदार बनाया। मानसिंह ने वहां गिद्धोर के शक्तिशाली राजा पूरणमल को हराया। काफी धन सम्पत्ति जीती।
खड़गपुर के राजा को परास्त कर उसका धन भी लूटा। बिहार के प्रर्णिया, ताजपुरा, दरभंगा को जीतकर धन हासिल किया। मानसिंह ने उड़ीसा को फतेह किया, उसके बाद अफगान विद्रोह को दबाया। उड़ीसा में मुगल साम्राज्य स्थापित करने के बाद वे बंगाल विजय के अभियान पर निकल पड़े।
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